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− | गोरी धूप कछार की हम सरसों के | + | गोरी धूप कछार की हम सरसों के फूल । |
− | जब-जब होंगे सामने तब-तब होगी | + | जब-जब होंगे सामने तब-तब होगी भूल ।। |
− | लगे फूँकने आम के बौर गुलाबी | + | लगे फूँकने आम के बौर गुलाबी शंख । |
− | कैसे रहें | + | कैसे रहें क़िताब में हम मयूर के पंख ।। |
− | दीपक वाली देहरी तारों वाली | + | दीपक वाली देहरी तारों वाली शाम । |
− | आओ लिख दूँ | + | आओ लिख दूँ चँद्रमा आज तुम्हारे नाम ।। |
− | हँसी चिकोटी गुदगुदी चितवन छुवन | + | हँसी चिकोटी गुदगुदी चितवन छुवन लगाव । |
− | सीधे-सादे प्यार के ये हैं मधुर | + | सीधे-सादे प्यार के ये हैं मधुर पड़ाव ।। |
− | कानों में जैसे पड़े मौसम के दो | + | कानों में जैसे पड़े मौसम के दो बोल । |
− | मन में कोई चोर था भागा कुंडी | + | मन में कोई चोर था, भागा कुंडी खोल ।। |
− | रोली अक्षत छू गए खिले गीत के | + | रोली-अक्षत छू गए खिले गीत के फूल । |
− | खुल करके बातें हुई मौसम के | + | खुल करके बातें हुई मौसम के अनुकूल ।। |
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+ | पुल बोए थे शौक से, उग आई दीवार । | ||
+ | कैसी ये जलवायु है, हे मेरे करतार ।। | ||
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13:28, 4 जनवरी 2011 का अवतरण
गोरी धूप कछार की हम सरसों के फूल ।
जब-जब होंगे सामने तब-तब होगी भूल ।।
लगे फूँकने आम के बौर गुलाबी शंख ।
कैसे रहें क़िताब में हम मयूर के पंख ।।
दीपक वाली देहरी तारों वाली शाम ।
आओ लिख दूँ चँद्रमा आज तुम्हारे नाम ।।
हँसी चिकोटी गुदगुदी चितवन छुवन लगाव ।
सीधे-सादे प्यार के ये हैं मधुर पड़ाव ।।
कानों में जैसे पड़े मौसम के दो बोल ।
मन में कोई चोर था, भागा कुंडी खोल ।।
रोली-अक्षत छू गए खिले गीत के फूल ।
खुल करके बातें हुई मौसम के अनुकूल ।।
पुल बोए थे शौक से, उग आई दीवार ।
कैसी ये जलवायु है, हे मेरे करतार ।।