भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"सियाराम / कैलाश गौतम" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
Pratishtha (चर्चा | योगदान) |
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) |
||
पंक्ति 5: | पंक्ति 5: | ||
}} | }} | ||
[[Category:गीत]] | [[Category:गीत]] | ||
− | + | <poem> | |
− | सियाराम का मन रमता है नाती पोतों में | + | सियाराम का मन रमता है नाती-पोतों में |
− | + | नहीं भागता मेले-ठेले बागों-खेतों में | |
− | नहीं भागता मेले ठेले बागों खेतों में | + | |
बच्चों के संग सियाराम भी सोते जगते हैं | बच्चों के संग सियाराम भी सोते जगते हैं | ||
− | |||
बच्चों में रहते हैं हरदम बच्चे लगते हैं | बच्चों में रहते हैं हरदम बच्चे लगते हैं | ||
− | + | टाफ़ी खाते, बिस्कुट खाते ठंडा पीते हैं | |
− | + | ||
टी.वी. के चैनल से ज्यादा चैनल जीते हैं | टी.वी. के चैनल से ज्यादा चैनल जीते हैं | ||
घोड़ा बनते इंजन बनते गाल फुलाते हैं | घोड़ा बनते इंजन बनते गाल फुलाते हैं | ||
+ | गुब्बारे में हवा फूँकते और उड़ाते हैं | ||
− | + | सियाराम की दिनभर की दिनचर्या बदल गई | |
− | + | नहीं कचहरी की चिन्ता, बस आई निकल गई | |
− | सियाराम की दिनभर की दिनचर्या बदल | + | |
− | + | ||
− | नहीं कचहरी की चिन्ता बस | + | |
− | + | ||
− | + | ||
− | भूल | + | चश्मे का शीशा फूटा औ’ छतरी टूट गई |
+ | भूल गए भगवान सुबह की पूजा छूट गई | ||
+ | </poem> |
13:55, 4 जनवरी 2011 का अवतरण
सियाराम का मन रमता है नाती-पोतों में
नहीं भागता मेले-ठेले बागों-खेतों में
बच्चों के संग सियाराम भी सोते जगते हैं
बच्चों में रहते हैं हरदम बच्चे लगते हैं
टाफ़ी खाते, बिस्कुट खाते ठंडा पीते हैं
टी.वी. के चैनल से ज्यादा चैनल जीते हैं
घोड़ा बनते इंजन बनते गाल फुलाते हैं
गुब्बारे में हवा फूँकते और उड़ाते हैं
सियाराम की दिनभर की दिनचर्या बदल गई
नहीं कचहरी की चिन्ता, बस आई निकल गई
चश्मे का शीशा फूटा औ’ छतरी टूट गई
भूल गए भगवान सुबह की पूजा छूट गई