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सियाराम / कैलाश गौतम

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[[Category:{{KKGlobal}}{{KKRachna|रचनाकार=कैलाश गौतम]]|संग्रह= }}[[Category:कविताएँगीत]]<poem>सियाराम का मन रमता है नाती -पोतों में नहीं भागता मेले -ठेले बागों -खेतों में
बच्चों के संग सियाराम भी सोते जगते हैं
 
बच्चों में रहते हैं हरदम बच्चे लगते हैं
टाफी टाफ़ी खाते, बिस्कुट खाते ठंडा पीते हैं 
टी.वी. के चैनल से ज्यादा चैनल जीते हैं
घोड़ा बनते इंजन बनते गाल फुलाते हैं
गुब्बारे में हवा फूँकते और उड़ाते हैं
गुब्बारे में हवा फूंकते और उड़ाते हैं सियाराम की दिनभर की दिनचर्या बदल गयीगईनहीं कचहरी की चिन्ता , बस आयी आई निकल गयी चश्मे का शीशा फूटा औ छतरी टूट गयीगई
चश्मे का शीशा फूटा औ’ छतरी टूट गईभूल गये गए भगवान सुबह की पूजा छूट गयीगई</poem>
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