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"क़तआत / सतीश शुक्ला 'रक़ीब'" के अवतरणों में अंतर

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क़तआत
 
क़तआत
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01
 
बिखरे पड़े हैं बेर ज़मीं पर हरे हरे
 
बिखरे पड़े हैं बेर ज़मीं पर हरे हरे
 
बेरी की डाल किसने हिलाई है कौन है
 
बेरी की डाल किसने हिलाई है कौन है
 
अन्याय किसने नन्हें फलों पर किया है ये
 
अन्याय किसने नन्हें फलों पर किया है ये
 
दुर्गत भला ये किसने बनाई है कौन है
 
दुर्गत भला ये किसने बनाई है कौन है
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02
 
चाँद सा चेहरा तेरे चहरे को मैं कैसे कहूँ
 
चाँद सा चेहरा तेरे चहरे को मैं कैसे कहूँ
 
क्यों कि तू है आदमी, और आदमी है बेमिसाल
 
क्यों कि तू है आदमी, और आदमी है बेमिसाल
 
ये जो सूरज है, नहीं कुछ आदमी के सामने
 
ये जो सूरज है, नहीं कुछ आदमी के सामने
 
आदमी इश्वर की रचना में है सबसे बाकमाल
 
आदमी इश्वर की रचना में है सबसे बाकमाल
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03
 
चन्द्रमा पर तू बाद में जाना
 
चन्द्रमा पर तू बाद में जाना
 
पहले धरती बदल समाज बदल
 
पहले धरती बदल समाज बदल
 
सुन समय की पुकार सुन ऐ 'रक़ीब'
 
सुन समय की पुकार सुन ऐ 'रक़ीब'
 
कल की मत सोच आज, आज बदल
 
कल की मत सोच आज, आज बदल
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दर हकीक़त आदमी का फ़र्ज़ है
 
दर हकीक़त आदमी का फ़र्ज़ है
 
आदमी को रब से डरना चाहिए
 
आदमी को रब से डरना चाहिए
 
माँ की इज्ज़त है ज़रूरी दोस्तो
 
माँ की इज्ज़त है ज़रूरी दोस्तो
 
बाप का आदर भी करना चाहिए
 
बाप का आदर भी करना चाहिए
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05
 
दूर से देखते ही रोज सलाम
 
दूर से देखते ही रोज सलाम
 
उसकी ख़िदमत में अर्ज़ करता हूँ
 
उसकी ख़िदमत में अर्ज़ करता हूँ
 
कोई लेता नहीं सलाम न ले
 
कोई लेता नहीं सलाम न ले
 
मैं अदा अपना फर्ज़ करता हूँ
 
मैं अदा अपना फर्ज़ करता हूँ
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06
 
एक हो जायेंगे इक दिन जहनो - दिल जुड़ जायेंगे
 
एक हो जायेंगे इक दिन जहनो - दिल जुड़ जायेंगे
 
और मुसाफिर  अपने-अपने मोड़  पर  मुड़  जायेंगे
 
और मुसाफिर  अपने-अपने मोड़  पर  मुड़  जायेंगे
 
बालो - पर भीगे  हुए  हैं,  सूख  जाने  दो  जरा
 
बालो - पर भीगे  हुए  हैं,  सूख  जाने  दो  जरा
 
पेड़  पर बैठे  परिंदे ,  खुद-ब-खुद  उड़  जायेंगे
 
पेड़  पर बैठे  परिंदे ,  खुद-ब-खुद  उड़  जायेंगे
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गाल गुलाबी, बाल सुनहरे, और अदा में भोलापन
 
गाल गुलाबी, बाल सुनहरे, और अदा में भोलापन
 
मेरे साक़ी की आँखें हैं नीली नीली थोड़ी सी
 
मेरे साक़ी की आँखें हैं नीली नीली थोड़ी सी
 
अर्ज़ करूँ क्या तुमसे लोगो, मैं कोई मयनोश नहीं
 
अर्ज़ करूँ क्या तुमसे लोगो, मैं कोई मयनोश नहीं
 
साक़ी की बातों में आकर, मैंने पी ली थोड़ी सी
 
साक़ी की बातों में आकर, मैंने पी ली थोड़ी सी
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हादसों से खुशी हादसों से है ग़म
 
हादसों से खुशी हादसों से है ग़म
 
हादसों से भला कौन है बच सका
 
हादसों से भला कौन है बच सका
 
हादसों में घिरी ही रही जिन्दगी
 
हादसों में घिरी ही रही जिन्दगी
 
जिसमे तू बन के आई बड़ा हादसा
 
जिसमे तू बन के आई बड़ा हादसा
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हम भी बहुत गरीब हैं, तुम भी तुम भी बहुत गरीब
 
हम भी बहुत गरीब हैं, तुम भी तुम भी बहुत गरीब
 
शायर  ने हँस के ये कहा इक दिन अदीब से
 
शायर  ने हँस के ये कहा इक दिन अदीब से
 
मजबूर हो के करते हैं इजहारे-हाले-दिल
 
मजबूर हो के करते हैं इजहारे-हाले-दिल
 
हम क्या करें हैं हमको, मोहब्बत 'रक़ीब' से
 
हम क्या करें हैं हमको, मोहब्बत 'रक़ीब' से
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इन्सानियत की आँखों से आँसू निकल पड़े
 
इन्सानियत की आँखों से आँसू निकल पड़े
 
ज़ुल्मों - सितम की देश में बरसात देखकर
 
ज़ुल्मों - सितम की देश में बरसात देखकर
 
रोता है बात करने से पहले वो आदमी
 
रोता है बात करने से पहले वो आदमी
 
आया है जो भी हालते गुजरात देखकर
 
आया है जो भी हालते गुजरात देखकर
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जिस्म दो हैं मगर एक है ज़िन्दगी
 
जिस्म दो हैं मगर एक है ज़िन्दगी
 
ग़म भी दोनों का इक, दोनों की इक खुशी
 
ग़म भी दोनों का इक, दोनों की इक खुशी
 
मैं  हूँ एक चाँद आकाश पर प्यार के
 
मैं  हूँ एक चाँद आकाश पर प्यार के
 
और तू है  मेरी जाँ मेरी चांदनी
 
और तू है  मेरी जाँ मेरी चांदनी
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लहू से सींचती है,  दूध,  माँ  जिसको  पिलाती  है
 
लहू से सींचती है,  दूध,  माँ  जिसको  पिलाती  है
 
बड़ा  होकर वो बच्चा,  माँ  का क्यों आदर नहीं करता
 
बड़ा  होकर वो बच्चा,  माँ  का क्यों आदर नहीं करता
 
सबब इसका है कुछ माहौल, और कुछ परवरिश उसकी
 
सबब इसका है कुछ माहौल, और कुछ परवरिश उसकी
 
जो  माँ के सामने अपना, वो नीचा सर नहीं करता
 
जो  माँ के सामने अपना, वो नीचा सर नहीं करता
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माँ को मौसी, मौसी को माँ कहिये तो कोई बात नहीं
 
माँ को मौसी, मौसी को माँ कहिये तो कोई बात नहीं
 
माँ के मरने पर बच्चे को मौसी पाला करती है
 
माँ के मरने पर बच्चे को मौसी पाला करती है
 
ममता से भर देती हैं मन खाला हर इक बच्चे की
 
ममता से भर देती हैं मन खाला हर इक बच्चे की
 
कोई नहीं कर सकता ख़िदमत जितनी खाला करती है
 
कोई नहीं कर सकता ख़िदमत जितनी खाला करती है
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मुफलिसी का तजकरा करता है क्यों हर बात पर
 
मुफलिसी का तजकरा करता है क्यों हर बात पर
 
शुक्र कर, तू जो भी है, जैसे भी हैं हालात पर
 
शुक्र कर, तू जो भी है, जैसे भी हैं हालात पर
 
एक दिन तक़दीर सँवरेगी तेरी भी ऐ 'रक़ीब'
 
एक दिन तक़दीर सँवरेगी तेरी भी ऐ 'रक़ीब'
 
नेकनीयत और भरोसा रख ख़ुदा की जात पर
 
नेकनीयत और भरोसा रख ख़ुदा की जात पर
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नित नये अन्दाज से ये जिस्म अपना बेचने
 
नित नये अन्दाज से ये जिस्म अपना बेचने
 
शाम हो जाते ही आते हैं सभी फुटपाथ पर
 
शाम हो जाते ही आते हैं सभी फुटपाथ पर
 
दोष इनका कुछ नहीं है ये तो है क़िस्मत का खेल
 
दोष इनका कुछ नहीं है ये तो है क़िस्मत का खेल
 
कोई महलों में हुआ पैदा कोई फुटपाथ पर
 
कोई महलों में हुआ पैदा कोई फुटपाथ पर
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न्याय कीजेगा तो ये अन्याय ख़ुद मिट जाएगा
 
न्याय कीजेगा तो ये अन्याय ख़ुद मिट जाएगा
 
स्वर्ग बन जाएगा भारत और भारत की ज़मीं
 
स्वर्ग बन जाएगा भारत और भारत की ज़मीं
 
प्यार की बारिश से हो जाएंगे सब ठंढे दिमाग़
 
प्यार की बारिश से हो जाएंगे सब ठंढे दिमाग़
 
आग नफ़रत की न भड़केगी न भड़केगी कभी
 
आग नफ़रत की न भड़केगी न भड़केगी कभी
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पिन खोली और मुँह  में दबाई
 
पिन खोली और मुँह  में दबाई
 
हाथ उठाए सँवारे बाल
 
हाथ उठाए सँवारे बाल
 
खेल हवा ने खेला था जब
 
खेल हवा ने खेला था जब
 
बिखर गए थे सारे बाल
 
बिखर गए थे सारे बाल
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रामायन, गीता और बायबल
 
रामायन, गीता और बायबल
 
गुरु ग्रन्थ यहाँ कुर-आन यहाँ
 
गुरु ग्रन्थ यहाँ कुर-आन यहाँ
 
क्यों आग लगी चारों जानिब
 
क्यों आग लगी चारों जानिब
 
हर्फे - नफ़रत लिक्खा है कहाँ
 
हर्फे - नफ़रत लिक्खा है कहाँ
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19
 
सवेरे के सूरज की पहली किरन तू
 
सवेरे के सूरज की पहली किरन तू
 
दिया है मुझे तू ने अपना उजाला
 
दिया है मुझे तू ने अपना उजाला
 
तेरे हुस्न पर शे'र कहता रहूँगा
 
तेरे हुस्न पर शे'र कहता रहूँगा
 
तेरा हुस्न है हर हसीं से निराला
 
तेरा हुस्न है हर हसीं से निराला
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20
 
सीने पर जो हाथ रखा तो
 
सीने पर जो हाथ रखा तो
 
जल गयी हर इक रेखा
 
जल गयी हर इक रेखा
 
हाथ दिखाया ज्योतिष को तो
 
हाथ दिखाया ज्योतिष को तो
 
ज्योतिष ने क्या देखा
 
ज्योतिष ने क्या देखा
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21
 
शबनमी शब में चांदनी निखरी
 
शबनमी शब में चांदनी निखरी
 
ग़म के साये में हर ख़ुशी निखरी
 
ग़म के साये में हर ख़ुशी निखरी

23:08, 6 जनवरी 2011 का अवतरण

साँचा:KKCatQataat


क़तआत
01
बिखरे पड़े हैं बेर ज़मीं पर हरे हरे
बेरी की डाल किसने हिलाई है कौन है
अन्याय किसने नन्हें फलों पर किया है ये
दुर्गत भला ये किसने बनाई है कौन है
02
चाँद सा चेहरा तेरे चहरे को मैं कैसे कहूँ
क्यों कि तू है आदमी, और आदमी है बेमिसाल
ये जो सूरज है, नहीं कुछ आदमी के सामने
आदमी इश्वर की रचना में है सबसे बाकमाल
03
चन्द्रमा पर तू बाद में जाना
पहले धरती बदल समाज बदल
सुन समय की पुकार सुन ऐ 'रक़ीब'
कल की मत सोच आज, आज बदल
04
दर हकीक़त आदमी का फ़र्ज़ है
आदमी को रब से डरना चाहिए
माँ की इज्ज़त है ज़रूरी दोस्तो
बाप का आदर भी करना चाहिए
05
दूर से देखते ही रोज सलाम
उसकी ख़िदमत में अर्ज़ करता हूँ
कोई लेता नहीं सलाम न ले
मैं अदा अपना फर्ज़ करता हूँ
06
एक हो जायेंगे इक दिन जहनो - दिल जुड़ जायेंगे
और मुसाफिर अपने-अपने मोड़ पर मुड़ जायेंगे
बालो - पर भीगे हुए हैं, सूख जाने दो जरा
पेड़ पर बैठे परिंदे , खुद-ब-खुद उड़ जायेंगे
07
गाल गुलाबी, बाल सुनहरे, और अदा में भोलापन
मेरे साक़ी की आँखें हैं नीली नीली थोड़ी सी
अर्ज़ करूँ क्या तुमसे लोगो, मैं कोई मयनोश नहीं
साक़ी की बातों में आकर, मैंने पी ली थोड़ी सी
08
हादसों से खुशी हादसों से है ग़म
हादसों से भला कौन है बच सका
हादसों में घिरी ही रही जिन्दगी
जिसमे तू बन के आई बड़ा हादसा
09
हम भी बहुत गरीब हैं, तुम भी तुम भी बहुत गरीब
शायर ने हँस के ये कहा इक दिन अदीब से
मजबूर हो के करते हैं इजहारे-हाले-दिल
हम क्या करें हैं हमको, मोहब्बत 'रक़ीब' से
10
इन्सानियत की आँखों से आँसू निकल पड़े
ज़ुल्मों - सितम की देश में बरसात देखकर
रोता है बात करने से पहले वो आदमी
आया है जो भी हालते गुजरात देखकर
11
जिस्म दो हैं मगर एक है ज़िन्दगी
ग़म भी दोनों का इक, दोनों की इक खुशी
मैं हूँ एक चाँद आकाश पर प्यार के
और तू है मेरी जाँ मेरी चांदनी
12
लहू से सींचती है, दूध, माँ जिसको पिलाती है
बड़ा होकर वो बच्चा, माँ का क्यों आदर नहीं करता
सबब इसका है कुछ माहौल, और कुछ परवरिश उसकी
जो माँ के सामने अपना, वो नीचा सर नहीं करता
13
माँ को मौसी, मौसी को माँ कहिये तो कोई बात नहीं
माँ के मरने पर बच्चे को मौसी पाला करती है
ममता से भर देती हैं मन खाला हर इक बच्चे की
कोई नहीं कर सकता ख़िदमत जितनी खाला करती है
14
मुफलिसी का तजकरा करता है क्यों हर बात पर
शुक्र कर, तू जो भी है, जैसे भी हैं हालात पर
एक दिन तक़दीर सँवरेगी तेरी भी ऐ 'रक़ीब'
नेकनीयत और भरोसा रख ख़ुदा की जात पर
15
नित नये अन्दाज से ये जिस्म अपना बेचने
शाम हो जाते ही आते हैं सभी फुटपाथ पर
दोष इनका कुछ नहीं है ये तो है क़िस्मत का खेल
कोई महलों में हुआ पैदा कोई फुटपाथ पर
16
न्याय कीजेगा तो ये अन्याय ख़ुद मिट जाएगा
स्वर्ग बन जाएगा भारत और भारत की ज़मीं
प्यार की बारिश से हो जाएंगे सब ठंढे दिमाग़
आग नफ़रत की न भड़केगी न भड़केगी कभी
17
पिन खोली और मुँह में दबाई
हाथ उठाए सँवारे बाल
खेल हवा ने खेला था जब
बिखर गए थे सारे बाल
18
रामायन, गीता और बायबल
गुरु ग्रन्थ यहाँ कुर-आन यहाँ
क्यों आग लगी चारों जानिब
हर्फे - नफ़रत लिक्खा है कहाँ
19
सवेरे के सूरज की पहली किरन तू
दिया है मुझे तू ने अपना उजाला
तेरे हुस्न पर शे'र कहता रहूँगा
तेरा हुस्न है हर हसीं से निराला
20
सीने पर जो हाथ रखा तो
जल गयी हर इक रेखा
हाथ दिखाया ज्योतिष को तो
ज्योतिष ने क्या देखा
21
शबनमी शब में चांदनी निखरी
ग़म के साये में हर ख़ुशी निखरी
मौत का शुक्रिया 'रक़ीब' के वो
याद आयी तो ज़िन्दगी निखरी