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13:36, 9 जनवरी 2011 के समय का अवतरण

जो विद्युत की द्युति कटाक्ष है
जो नग नागों की कृपाण है
वही केन है
इस प्रदेश के
जीर्ण जनों की जीवित धारा
बहती है जैसे मद बहता
गंडस्थल से गज के;
ध्वनि का धैवत
जैसे बहता धृति से निर्गत;
हार हारती, वह न हारती।

रचनाकाल: १२-०२-१९६२