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"वह न अंधकार चाहता है न प्रकाश / केदारनाथ अग्रवाल" के अवतरणों में अंतर

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न उसके पास
अँधेरा है
न उजेला
कि सबका सब कुछ चुराए
दर्पण दिखाए
आदमी को, आदमी नजर न आए
अन्यथा मर जाए
फिर भी वह
न गरीब है
न नेता-न अभिनेता
कि गुल हो बल्ब की तरह
वाणी बंद हो
नाटक रुके
क्योंकि वह
न अंधकार चाहता है
न प्रकाश
बल्कि जीना चाहता है जीवन
करते हुए काम
निर्माण की हर दिशा में

रचनाकाल: २३-१०-१९६७