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पानी-
जो था आदमी का पानी
दहाड़ता
स्वाभिमानी :
संघर्ष की जवानी :
पालतू है अब
आदमी का पानी
न रह गया है तेज-
न है तर्रार
न धारदार
कि उमड़े
बह जाय जंगल
रचनाकाल: २९-१२-१९६७