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12:35, 11 जनवरी 2011 के समय का अवतरण
मौत की मुट्ठियों से
निकलकर बाहर
जमीन में लोटती गोमती
प्यार का पय लिए
तुम्हें खोजती है
मुख्यमंत्री की संवेदना
बटोरती है
और हम
और हम जैसे तमाम लोग
समय की पीठ पर
लट्ठ मारते,
भागती-दौड़ती दुनिया में
चकरघिन्नी काटते हैं
काश
हम देखते तुम्हें
काल के सिर पर सवार
दिग्विजय करते
वर्ष-प्रतिवर्ष
जीवन को जवान करते
रचनाकाल: संभावित १९७५