भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"यहाँ भी आदमी / केदारनाथ अग्रवाल" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=केदारनाथ अग्रवाल |संग्रह=कुहकी कोयल खड़े पेड़ …)
 
छो ("यहाँ भी आदमी / केदारनाथ अग्रवाल" सुरक्षित कर दिया ([edit=sysop] (indefinite) [move=sysop] (indefinite)))
 
(कोई अंतर नहीं)

11:37, 14 जनवरी 2011 के समय का अवतरण

यहाँ भी
आदमी
औरतों का
शील भंग करते हैं
देह की डाल का
झूला झूलते हैं,
अंग
और अनंग की
लीला में लीन
एक ही अकूल में
पैरते-डूबते
एक हुए
रीझते-सीझते हैं

रचनाकाल: १४-०६-१९७६, मद्रास