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"शब्दों की संसद / मंगत बादल" के अवतरणों में अंतर

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<poem>शब्दों की संसद, के अध्यक्ष
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{{KKRachna
नेताजी ने
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|रचनाकार=मंगत बादल
यह कहते हुये त्याग-पत्र दे दिया -
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}}
अब मैं बेइमानी और
+
 
भ्रष्टाचार का पर्याय हो गया हूँ
+
{{KKPustak
लोग अब मुझ पर विश्वास नहीं करते
+
|चित्र=
इसलिये असहाय हो गया हूँ
+
|नाम=
मुझे अब संन्यास ले लेना चाहिए
+
|रचनाकार=[[मंगत बादल]]
यह मेरी आत्मा की आवाज है
+
|प्रकाशक=
उसी समय
+
|वर्ष=
एक कोने में बैठी आत्मा गिड़गिड़ाई-
+
|भाषा= हिंदी
श्रीमन्! मैं तो बोली ही नहीं
+
|विषय= कविताएँ
आप खामख्वाह नाराज हैं
+
|शैली= छंद मुक्त
लेकिन इसी बीच भाषण ने खड़े होकर
+
|पृष्ठ=
आत्मा को चुप कराया
+
|ISBN=
और सम्मान सूचक शब्दों को दोहराया
+
|विविध=
फिर बोला-
+
}}
मान्यवर! हमें एक मौका और दें
+
 
हम आपकी साख पुनः जमा देंगे
+
* [[शब्दों की संसद (शीर्षक कविता) / मंगत बादल]]
सच मानिय!
+
* [[ / मंगत बादल]]
विरोध को भी
+
* [[ / मंगत बादल]]
आपके खेमे में ला देंगे
+
जनमत हमारा है
+
हम वर्ग विशेष का
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वायदों के बलबूते पर उद्धार करेंगे
+
और चुनाव की वैतरणी को
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आश्वासनों की कपिला से पार करेंगे।
+
तभी आश्वासन बीच में बोल पड़ा-
+
क्षमा करें महोदय!
+
कपिला अब बूढ़ी हो चुकी है
+
कभी भी डूब सकती है
+
रही बात वायदों की
+
तो उन पर से
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विश्वास का मुलम्बा छूट चुका है
+
और जहाँ तक विरोध का सवाल है
+
उसका संविधान के सम्बन्ध में
+
सुनहरा भ्रम टूट चुका है।
+
विरोध यह सुनकर बौखलाया
+
शेम-शेम चिल्लाया
+
और यह कहते हुये
+
उसने सारा दोष कुर्सी पर लगाया-
+
उसकी टांग अब
+
हर मामले में अड़ने लगी है
+
और व्यवस्था
+
गंदे पानी की तरह सड़ने लगी है
+
इस तरह
+
अब और सहन नहीं होगा
+
जनमत के नाम पर
+
यह ढोंग
+
अब और वहन नहीं होगा।
+
हम आन्दोलन बुलवायेंगे
+
उसने यदि साथ दिया
+
तो मध्यावधि करवायेंगे।
+
सत्ता अब
+
इमनजैंसी की बन्दूक दाग रही थी
+
और जनता भयभीत होकर
+
ताबड़तोड़ भाग रही थी।
+
अवसरवाद अब मैदान में आ गया
+
और सम्प्रदाय ने
+
हाथ में बर्छी उठाली
+
जिससे वह
+
सद्भावना की जड़ें काटने लगा।
+
भाषा की आँखों में तेजाब झोंककर
+
मुँह पर टेप चिपका दिया गया
+
और प्रचार
+
विभाजन के पर्चे बाँटने लगा।
+
निरन्तर राहत का अन्न खा-खाकर
+
कर्यू के पर्यावरण में
+
अफवाहें फैलाना
+
बोद्धिकता की जरूरी माँग हो गई
+
और दमन की चपेट में आकर
+
समाजवाद की तरफ बढ़ती हुई स्वतंत्रता
+
विकलांग हो गई।
+
अध्यक्ष के त्याग-पत्र से
+
संवैधानिक संकट खड़ा हो गया,
+
संसद भंग हो गई
+
और देश गहरी नींद में सो गया।
+
</poem>
+

04:18, 15 जनवरी 2011 का अवतरण


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रचनाकार मंगत बादल
प्रकाशक
वर्ष
भाषा हिंदी
विषय कविताएँ
विधा छंद मुक्त
पृष्ठ
ISBN
विविध
इस पन्ने पर दी गई रचनाओं को विश्व भर के स्वयंसेवी योगदानकर्ताओं ने भिन्न-भिन्न स्रोतों का प्रयोग कर कविता कोश में संकलित किया है। ऊपर दी गई प्रकाशक संबंधी जानकारी छपी हुई पुस्तक खरीदने हेतु आपकी सहायता के लिये दी गई है।