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तिन पै जेहि छिन चन्द जोति रक निसि आवति ।
जल मै मिलिकै नभ अवनी लौं तानि तनावति॥होत मुकुरमय सबै तबै उज्जल इक ओभा ।तन मन नैन जुदात देखि सुन्दर सो सोभा ॥सो को कबि जो छबि कहि , सकै ता जमुन नीर की ।मिलि अवनि और अम्बर रहत , छबि इक - सी नभ तीर की ॥२॥
परत चन्र्द प्रतिबिम्ब कहूँ जल मधि चमकायो ।
कबहुँ होत सत चन्द कबहुँ प्रगटत दुरि भाजत ।
पवन गवन बस बिम्ब रूप जल मैं बहु साजत ।।
मनु ससि भरि अनुराग जामुन जल लोटत डोलै ।
कै तरंग की डोर हिंडोरनि करत कलोलैं ।।
कै बालगुड़ी नभ में उड़ी, सोहत इत उत धावती ।
कई अवगाहत डोलात कोऊ ब्रजरमनी जल आवती ।।४।।
मनु जुग पच्छ प्रतच्छ होत मिटी जात जामुन जल ।
कै तारागन ठगन लुकत प्रगटत ससि अबिकल ।।
कै कालिन्दी नीर तरंग जितौ उपजावत ।
तितनो ही धरि रूप मिलन हित तासों धावत ।।
कै बहुत रजत चकई चालत कै फुहार जल उच्छरत ।
कै निसिपति मल्ल अनेक बिधि उठि बैठत कसरत करत ।।५।।
कूजत कहुँ कलहंस कहूँ मज्जत पारावत ।कहुँ काराणडव उडत कहूँ जल कुक्कुट धावत ।।चक्रवाक कहुँ बसत कहूँ बक ध्यान लगावत ।सुक पिक जल कहुँ पियत कहूँ भ्रम्रावलि गावत ।।तट पर नाचत मोर बहु रोर बिधित पच्छी करत । जल पान न्हान करि सुख भरे तट सोभा सब धरत ।।६।।
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