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"प्रकाश हास / चन्द्रकुंवर बर्त्वाल" के अवतरणों में अंतर
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किस प्रकाश का हास तुम्हारे मुख पर छाया | किस प्रकाश का हास तुम्हारे मुख पर छाया | ||
तरुण तपस्वी तुमने किसका दर्शन पाया ? | तरुण तपस्वी तुमने किसका दर्शन पाया ? | ||
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सुख-दुख में हँसना ही किसने तुम्हे सिखाया | सुख-दुख में हँसना ही किसने तुम्हे सिखाया | ||
किसने छूकर तुम्हें स्वच्छ निष्पाप बनाया ? | किसने छूकर तुम्हें स्वच्छ निष्पाप बनाया ? | ||
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फैला चारों ओर तुम्हारे घन सूनापन | फैला चारों ओर तुम्हारे घन सूनापन | ||
सूने पर्वत चारों ओर खड़े, सूने घन । | सूने पर्वत चारों ओर खड़े, सूने घन । | ||
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विचर रहे सूने नभ में, पर तुम हँस-हँस कर | विचर रहे सूने नभ में, पर तुम हँस-हँस कर | ||
जाने किससे सदा बोलते अपने भीतर ? | जाने किससे सदा बोलते अपने भीतर ? | ||
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उमड़ रहा गिरि-गिरि से प्रबल वेग से झर-झर | उमड़ रहा गिरि-गिरि से प्रबल वेग से झर-झर | ||
वह आनंद तुम्हारा करता शब्द मनोहर । | वह आनंद तुम्हारा करता शब्द मनोहर । | ||
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करता ध्वनित घाटियों को, धरती को उर्वर | करता ध्वनित घाटियों को, धरती को उर्वर | ||
करता स्वर्ग धरा को निज चरणों से छूकर । | करता स्वर्ग धरा को निज चरणों से छूकर । | ||
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तुमने कहाँ हृदय-हृदय में सुधा-स्रोत वह पाया | तुमने कहाँ हृदय-हृदय में सुधा-स्रोत वह पाया | ||
किस प्रकाश का हास तुम्हारे मुख पर छाया ? | किस प्रकाश का हास तुम्हारे मुख पर छाया ? | ||
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15:40, 22 जनवरी 2011 के समय का अवतरण
किस प्रकाश का हास तुम्हारे मुख पर छाया
तरुण तपस्वी तुमने किसका दर्शन पाया ?
सुख-दुख में हँसना ही किसने तुम्हे सिखाया
किसने छूकर तुम्हें स्वच्छ निष्पाप बनाया ?
फैला चारों ओर तुम्हारे घन सूनापन
सूने पर्वत चारों ओर खड़े, सूने घन ।
विचर रहे सूने नभ में, पर तुम हँस-हँस कर
जाने किससे सदा बोलते अपने भीतर ?
उमड़ रहा गिरि-गिरि से प्रबल वेग से झर-झर
वह आनंद तुम्हारा करता शब्द मनोहर ।
करता ध्वनित घाटियों को, धरती को उर्वर
करता स्वर्ग धरा को निज चरणों से छूकर ।
तुमने कहाँ हृदय-हृदय में सुधा-स्रोत वह पाया
किस प्रकाश का हास तुम्हारे मुख पर छाया ?