भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"यक्ष-प्रश्न / राजेश चड्ढ़ा" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
Neeraj Daiya (चर्चा | योगदान) |
Neeraj Daiya (चर्चा | योगदान) |
||
(इसी सदस्य द्वारा किया गया बीच का एक अवतरण नहीं दर्शाया गया) | |||
पंक्ति 1: | पंक्ति 1: | ||
{{KKGlobal}} | {{KKGlobal}} | ||
{{KKRachna | {{KKRachna | ||
− | |रचनाकार= राजेश | + | |रचनाकार= राजेश चड्ढा |
|संग्रह= | |संग्रह= | ||
}} | }} | ||
पंक्ति 15: | पंक्ति 15: | ||
बाहर हूं , | बाहर हूं , | ||
तो- | तो- | ||
− | दिखाई देता हूं । | + | तुम्हें दिखाई देता हूं । |
सवाल ये है- | सवाल ये है- | ||
कि आख़िर, | कि आख़िर, | ||
मैं दिखता कैसा हूं ? | मैं दिखता कैसा हूं ? | ||
</poem> | </poem> |
20:31, 1 फ़रवरी 2011 के समय का अवतरण
ख़ुद को ,
ख़ुद से
ढ़ूंढ़ कर,
ले आया हूं ,
भीतर से बाहर ।
भीतर था ,
तो मुझे ,
मैं-
दिखाई देता था ।
बाहर हूं ,
तो-
तुम्हें दिखाई देता हूं ।
सवाल ये है-
कि आख़िर,
मैं दिखता कैसा हूं ?