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तुम वही थीं :<br>
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किन्तु ढलती धूप का कुछ खेल था-<br>
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तुम  
ढलती उमर के दाग़ उसने धो दिये थे।<br>
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वही थीं :  
भूल थी <br>
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किन्तु ढलती धूप का कुछ खेल था-  
पर<br>
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ढलती उमर के दाग़ उसने धो दिये थे।  
बन गयी पहचान-<br>
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भूल थी
मैं भी स्मरण से <br>
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नहा आया।<br><br>
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बन गयी पहचान-  
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मैं भी स्मरण से
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नहा आया।
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18:06, 2 फ़रवरी 2011 के समय का अवतरण

तुम
वही थीं :
किन्तु ढलती धूप का कुछ खेल था-
ढलती उमर के दाग़ उसने धो दिये थे।
भूल थी
पर
बन गयी पहचान-
मैं भी स्मरण से
नहा आया।