भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"दादा की तस्वीर / मंगलेश डबराल" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
पंक्ति 1: पंक्ति 1:
 
{{KKGlobal}}
 
{{KKGlobal}}
रचनाकार: [[मंगलेश डबराल]]
+
{{KKRachna
[[Category:कविताएँ]]
+
|रचनाकार=मंगलेश डबराल
[[Category:मंगलेश डबराल]]
+
|संग्रह=हम जो देखते हैं / मंगलेश डबराल
 +
}}
  
~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~
 
 
दादा को तस्वीरें खिंचवाने का शौक नहीं था
 
दादा को तस्वीरें खिंचवाने का शौक नहीं था
  

22:18, 29 दिसम्बर 2007 का अवतरण

दादा को तस्वीरें खिंचवाने का शौक नहीं था

या उन्हें समय नहीं मिला

उनकी सिर्फ़ एक तस्वीर गंदी पुरानी दीवार पर टंगी है

वे शांत और गम्भीर बैठे हैं

पानी से भरे हुए बादल की तरह


दादा के बारे में इतना ही मालूम है

कि वे माँगनेवालों को भीख देते थे

नींद में बेचैनी से करवट बदलते थे

और सुबह उठकर

बिस्तर की सलवटें ठीक करते थे

मैं तब बहुत छोटा था

मैंने कभी उनका गुस्सा नहीं देखा

उनका मामूलीपन नहीं देखा

तस्वीरें किसी मनुष्य की लाचारी नहीं बतलातीं

माँ कहती है जब हम

रात के विचित्र पशुओं से घिरे सो रहे होते हैं

दादा इस तस्वीर में जागते रहते हैं


मैं अपने दादा जितना लम्बा नहीं हुआ

शान्त और गम्भीर नहीं हुआ

पर मुझमें कुछ है उनसे मिलता जुलता

वैसा ही क्रोध वैसा ही मामूलीपन

मैं भी सर झुकाकर चलता हूँ

जीता हूँ अपने को तस्वीर के एक खाली फ़्रेम में

बैठे देखता हुआ


(1990)