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दिल्ली / अनिल जनविजय

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{{KKRachna
|रचनाकार=अनिल जनविजय
|संग्रह=राम जी भला करें / अनिल जनविजय
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{{KKCatKavita‎}}<poem>
बीस बरस पहले की
 
अपनी वो आश्नाई
 
मुझे याद है
 
मैं भूला नहीं हूँ अब तलक
 
कसमें जो भी
 
तब तूने मुझे दिलाईं
 
मुझे याद हैं
 
मैं भूला नहीं हूँ अब तलक
 
बिन तेरे
 
महसूस होती थी जो तन्हाई
 
मुझे याद है
 
मैं भूला नहीं हूँ अब तलक
 
तब मुझसे तूने किए थे
 
जो वादे
 
मुझे याद हैं
 
मैं भूला नहीं हूँ अब तलक
 
फिर तूने तोड़ दिया था
 
मेरा शीशा-ए-दिल
 
मुझे याद है
 
मैं भूला नहीं हूँ अब तलक
 
सबके सामने तूने
 
की थी मेरी रुसवाई
 
मुझे याद है
 
मैं भूला नहीं हूँ अब तलक
 
तेरी ही वज़ह से
 
तब हुई थी जगहँसाई
 
मुझे याद है
 
मैं भूला नहीं हूँ अब तलक
 (1992में 1992 में रचित)</poem>
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