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"पत्ते नीम के / उपेन्द्र कुमार" के अवतरणों में अंतर

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13:06, 11 फ़रवरी 2011 के समय का अवतरण

हवा चली
ठनके पत्ते
हरे नहीं
बादामी
नीम के
झरने से पहले

बगल में उगे पेड़ ने
झुक कर मेरी तरफ
बढ़ाए थे टहनियों के हाथ
हरे पत्तों की
सँवलाई छाँह के नीचे
निपटाए थे बहुत से काम
बढ़ने लगी थी
परस्परता

हरे पत्ते गर्मियों में
झुलाते थे पंखा
और सर्दियों में
गुनगुनी धूप
छनकर आती थी मुझ तक

झर-झर शोर मचाती
परिहास में डोलती
टहनियाँ
बढ़-बढ़ कर घेरती थी
फूलों से
निम्बोरियों से
फूटती सुगन्ध ने
कितनी ही बार बुलाया
और हर बार वही सुगन्ध
प्रमुदित करती थी
कविताओं को

लिखा है भविष्य
इन हरे पत्तों पर
जो पतझर में
पीले से बादामी होते
जमीन पर
गिरते ही रहते हैं

अगले पतझर में भी
पीले पत्तो
तुम आना
मैं तुम्हें दूँगा समय को