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Kavita Kosh से
दमकता ताँबा पा लिया
मैं हिम, पाषाण, धातु युग के पुनर्जागरण काल से
गुज़र कर यहा~म यहाँ तक आया हूँ
धातुओं को रूप बदलते पहली बर देखा
ओह... जैसे अग्नि की आत्मा चमक उठी हो
कितनी हैरत में हूँ
कहाँ देख पाऊँगा उन्हें
जो चकमक के ह्थौड़े हथौड़े से धातु को पीटकर
कुल्हाड़ों के फाल...
कुदालों...बर्छियों में बदल रहे थे