Changes

कामना / विजेन्द्र

4 bytes removed, 15:57, 16 फ़रवरी 2011
जब सब छोड़ कर चले गए
वृक्ष मेरे मित्र बने रहे
खुली हवा... निरभ्र अकाश आकाश में
साँस लेत रहा
निखरी धूप में
दमकता ताँबा पा लिया
मैं हिम, पाषाण, धातु युग के पुनर्जागरण काल से
गुज़र कर यहा~म यहाँ तक आया हूँ
धातुओं को रूप बदलते पहली बर देखा
ओह... जैसे अग्नि की आत्मा चमक उठी हो
कितनी हैरत में हूँ
कहाँ देख पाऊँगा उन्हें
जो चकमक के ह्थौड़े हथौड़े से धातु को पीटकर
कुल्हाड़ों के फाल...
कुदालों...बर्छियों में बदल रहे थे
Delete, Mover, Protect, Reupload, Uploader
54,461
edits