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"काली पट्टी दिखती/ शीलेन्द्र कुमार सिंह चौहान" के अवतरणों में अंतर

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'''काली पट्टी दिखती'''
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हर उंगली भोली चिड़िया के  
 
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हर उंगली भोली चिडिया के  
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पंख कतरती है,  
 
पंख कतरती है,  
राजा के आंखो पर काली  
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राजा के आँखो पर काली  
पट्टी दिखती है।
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पट्टी दिखती है ।
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अंधी नगरी, चौपट राजा,  
 
अंधी नगरी, चौपट राजा,  
 
शासन सिक्के का,  
 
शासन सिक्के का,  
हर बाजी पर कब्जा दिखता  
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हर बाज़ी पर कब्ज़ा दिखता  
जालिम इक्के का,  
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ज़ालिम इक्के का,  
 
राजनीति की चिमनी गाढ़ा  
 
राजनीति की चिमनी गाढ़ा  
धुंआं उगलती है।
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धुआँ उगलती है ।
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मारकीन का फटा अंगरखा  
 
मारकीन का फटा अंगरखा  
 
धोती गाढ़े की,  
 
धोती गाढ़े की,  
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रातें जाड़े की,  
 
रातें जाड़े की,  
 
थाने के अन्दर अबला की  
 
थाने के अन्दर अबला की  
इज्जत लुटती है।
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इज़्ज़त लुटती है ।
इनकी मरा आंख का पानी  
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इनकी मरा आँख का पानी  
 
तो वो अंधे हैं,  
 
तो वो अंधे हैं,  
खाल परायी से घर भरना  
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खाल पराई से घर भरना  
 
सबके धंधे हैं  
 
सबके धंधे हैं  
अखबारों में रोज लूट की  
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अख़बारों में रोज़ लूट की  
खबर निकलती है।
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ख़बर निकलती है ।
राज के आंखो पर काली  
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पट्टी दिखती है।
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राजा के आँखो पर काली  
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पट्टी दिखती है ।
 
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01:50, 27 फ़रवरी 2011 का अवतरण

हर उंगली भोली चिड़िया के
पंख कतरती है,
राजा के आँखो पर काली
पट्टी दिखती है ।
 
अंधी नगरी, चौपट राजा,
शासन सिक्के का,
हर बाज़ी पर कब्ज़ा दिखता
ज़ालिम इक्के का,
राजनीति की चिमनी गाढ़ा
धुआँ उगलती है ।
 
मारकीन का फटा अंगरखा
धोती गाढ़े की,
आसमान के नीचे कटतीं
रातें जाड़े की,
थाने के अन्दर अबला की
इज़्ज़त लुटती है ।
 
इनकी मरा आँख का पानी
तो वो अंधे हैं,
खाल पराई से घर भरना
सबके धंधे हैं
अख़बारों में रोज़ लूट की
ख़बर निकलती है ।
 
राजा के आँखो पर काली
पट्टी दिखती है ।