भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"सूर्य -स्तुति / तुलसीदास" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
पंक्ति 5: | पंक्ति 5: | ||
{{KKCatKavita}} | {{KKCatKavita}} | ||
<poem> | <poem> | ||
− | + | '''सूर्य स्तुति''' | |
− | दीन दयालु दिवाकर देवा। कर मुनि, मनुज, सुरासुर सेवा।।1 | + | |
− | हिम तम-करि-केहरि करमाली। दहन दोष दुख दुरित रूजाली।2। | + | दीन दयालु दिवाकर देवा। |
− | कोक कोकनद लोक प्रकासी। तेज प्रताप रूप् रस-रासी।3। | + | कर मुनि, मनुज, सुरासुर सेवा।।1 |
− | सारथि-पंगु, दिब्य रथ गामी। हरि संकर बिधि मूरति स्वामी।4। | + | हिम तम-करि-केहरि करमाली। |
− | बेद पुरान प्रगट जस जागै। तुलसी राम-भगति बर मांगै।5। | + | दहन दोष दुख दुरित रूजाली।2। |
+ | कोक कोकनद लोक प्रकासी। | ||
+ | तेज प्रताप रूप् रस-रासी।3। | ||
+ | सारथि-पंगु, दिब्य रथ गामी। | ||
+ | हरि संकर बिधि मूरति स्वामी।4। | ||
+ | बेद पुरान प्रगट जस जागै। | ||
+ | तुलसी राम-भगति बर मांगै।5। | ||
</poem> | </poem> |
13:20, 3 मार्च 2011 के समय का अवतरण
सूर्य स्तुति
दीन दयालु दिवाकर देवा।
कर मुनि, मनुज, सुरासुर सेवा।।1
हिम तम-करि-केहरि करमाली।
दहन दोष दुख दुरित रूजाली।2।
कोक कोकनद लोक प्रकासी।
तेज प्रताप रूप् रस-रासी।3।
सारथि-पंगु, दिब्य रथ गामी।
हरि संकर बिधि मूरति स्वामी।4।
बेद पुरान प्रगट जस जागै।
तुलसी राम-भगति बर मांगै।5।