भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"एक रहगुज़र पर / फ़ैज़ अहमद फ़ैज़" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
पंक्ति 6: पंक्ति 6:
 
{{KKCatNazm}}
 
{{KKCatNazm}}
 
<poem>
 
<poem>
वो जिसकी दीद में लाखों मसर्रतें पिन्हाँ
+
वो जिसकी दीद में लाखों मसर्रतें<ref>ख़ुशियाँ</ref> पिन्हाँ
 
वो हुस्न जिसकी तमन्ना में जन्नतें पिन्हाँ  
 
वो हुस्न जिसकी तमन्ना में जन्नतें पिन्हाँ  
  
हज़ार फित्ने तहे-पा-ए-नाज़ ख़ाकनशीं
+
हज़ार फित्ने<ref>उपद्रव</ref> तहे-पा-ए-नाज़<ref>सुंदरता के पैर के नीचे</ref> ख़ाकनशीं
हर एक निगाह ख़मारे-शबाब से रंगीं  
+
हर एक निगाह ख़मारे-शबाब<ref>यौवन-मद</ref> से रंगीं  
  
शबाब, जिससे तख़य्युल पे बिजलियाँ बरसें
+
शबाब, जिससे तख़य्युल<ref>कल्पना</ref> पे बिजलियाँ बरसें
विक़ार जिसकी रक़ाबत को शोख़ियाँ तरसें  
+
विक़ार<ref>गरिमा</ref> जिसकी रक़ाबत<ref>साथ</ref> को शोख़ियाँ तरसें  
  
अदा-ए-लग़्ज़िशे-पा पर क़यामतें क़ुर्बां
+
अदा-ए-लग़्ज़िशे-पा<ref>पैरों के काँपने का ढंग</ref> पर क़यामतें क़ुर्बां
बयाज़े-रुख़ पे सहर की सबाहतें क़ुर्बां  
+
बयाज़े-रुख़<ref>चेहरे का गोरा रंग</ref> पे सहर की सबाहतें<ref>सफ़ेदी, रौशनी</ref> क़ुर्बां  
  
सियाह ज़ुल्फ़ों में वारफ़्तः नकहतों तो हुजूम
+
सियाह ज़ुल्फ़ों में वारफ़्तः<ref>बहती हुई</ref> नकहतों<ref>सुगंध</ref> तो हुजूम
 
तवील रातों की ख़्वाबीदः राहतों का हुजूम  
 
तवील रातों की ख़्वाबीदः राहतों का हुजूम  
  
वो आँख जिसके बना’व पे ख़ालिक इतराये
+
वो आँख जिसके बना’व पे ख़ालिक<ref>सृष्टा</ref> इतराये
 
ज़बाने-शे’र को तारीफ़ करते शर्म आये  
 
ज़बाने-शे’र को तारीफ़ करते शर्म आये  
  
 
वो होंठ फ़ैज़ से जिनके बहारे-लालःफरोश
 
वो होंठ फ़ैज़ से जिनके बहारे-लालःफरोश
बहिश्त-ओ-कौसर-ओ-तसनीम-ओ-सलसबील ब-दोश  
+
बहिश्त-ओ-कौसर-ओ-तसनीम-ओ-सलसबील<ref>जन्नत और उसकी नहरें</ref> ब-दोश<ref>कंधे पर लिए हुए</ref>
  
 
गुदाज़-जिस्म, क़बा जिस पे सज के नाज़ करे
 
गुदाज़-जिस्म, क़बा जिस पे सज के नाज़ करे
दराज़ क़द जिसे सर्वे-सही नमाज़ करे  
+
दराज़ क़द जिसे सर्वे-सही<ref>सर्व के सीधे पेड़</ref> नमाज़ करे  
  
 
ग़रज़ वो हुस्न जो मोहताज-ए-वस्फ़-ओ-नाम<ref>परिचय या नाम का मुहताज</ref> नहीं
 
ग़रज़ वो हुस्न जो मोहताज-ए-वस्फ़-ओ-नाम<ref>परिचय या नाम का मुहताज</ref> नहीं

13:44, 7 मार्च 2011 का अवतरण

वो जिसकी दीद में लाखों मसर्रतें<ref>ख़ुशियाँ</ref> पिन्हाँ
वो हुस्न जिसकी तमन्ना में जन्नतें पिन्हाँ

हज़ार फित्ने<ref>उपद्रव</ref> तहे-पा-ए-नाज़<ref>सुंदरता के पैर के नीचे</ref> ख़ाकनशीं
हर एक निगाह ख़मारे-शबाब<ref>यौवन-मद</ref> से रंगीं

शबाब, जिससे तख़य्युल<ref>कल्पना</ref> पे बिजलियाँ बरसें
विक़ार<ref>गरिमा</ref> जिसकी रक़ाबत<ref>साथ</ref> को शोख़ियाँ तरसें

अदा-ए-लग़्ज़िशे-पा<ref>पैरों के काँपने का ढंग</ref> पर क़यामतें क़ुर्बां
बयाज़े-रुख़<ref>चेहरे का गोरा रंग</ref> पे सहर की सबाहतें<ref>सफ़ेदी, रौशनी</ref> क़ुर्बां

सियाह ज़ुल्फ़ों में वारफ़्तः<ref>बहती हुई</ref> नकहतों<ref>सुगंध</ref> तो हुजूम
तवील रातों की ख़्वाबीदः राहतों का हुजूम

वो आँख जिसके बना’व पे ख़ालिक<ref>सृष्टा</ref> इतराये
ज़बाने-शे’र को तारीफ़ करते शर्म आये

वो होंठ फ़ैज़ से जिनके बहारे-लालःफरोश
बहिश्त-ओ-कौसर-ओ-तसनीम-ओ-सलसबील<ref>जन्नत और उसकी नहरें</ref> ब-दोश<ref>कंधे पर लिए हुए</ref>

गुदाज़-जिस्म, क़बा जिस पे सज के नाज़ करे
दराज़ क़द जिसे सर्वे-सही<ref>सर्व के सीधे पेड़</ref> नमाज़ करे

ग़रज़ वो हुस्न जो मोहताज-ए-वस्फ़-ओ-नाम<ref>परिचय या नाम का मुहताज</ref> नहीं
वो हुस्न जिसका तस्सवुर बशर<ref>मनुष्य</ref> का काम नहीं

किसी ज़माने में इस रहगुज़र से गुज़रा था
ब-सद-ग़ुरूरो-तजम्मुल<ref>सैकड़ों अभिमान और रूप लेकर</ref> इधर से गुज़रा था

और अब ये राहगुज़र भी है दिलफरेब-ओ-हसीं
है इसकी ख़ाक मे कैफ़-ए-शराब-ओ-शे’र<ref>मदिरा और कविता की मादकता</ref> मकीं<ref>बसा हुआ</ref>

हवा मे शोख़ी-ए-रफ़्तार<ref>चाल की चंचलता</ref> की अदाएँ हैं
फ़ज़ा मे नर्मी-ए-गुफ़्तार<ref>वाणी की कोमलता</ref> की सदाएँ हैं

गरज़ वो हुस्न अब इस जा का ज़ुज़्वे-मंज़र<ref>दृश्य का अंश</ref> है
नियाज़-ए-इश्क़<ref>प्रेम की कामना</ref> को इक सिज्दःगह मयस्सर है

शब्दार्थ
<references/>