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+ | राम-प्रेमबिनु नेम जाय जैसे मृग -जल-जलधि-हिलोरे।। | ||
+ | लोक-बिलोकि, पुरान-बेद सुनि, समुझि-बूझि गुरू ग्यानी। | ||
+ | प्रीति-प्रतीति राम-पद -पंकज सकल-सुमंगल-खानी।। | ||
+ | अजहुँ जानि जिय, मानि हारि हिय, होइ पलक महँ नीको। | ||
+ | सुमिरू सनेहसहित हित रामहिं, मानु मतो तुलसीको।। | ||
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13:45, 10 मार्च 2011 का अवतरण
पद 191 से 200 तक
(194)
जे अनुराग न राम सनेही सों।
तौ लह्यों लाहु कहा नर-देही सो।
जो तनु धरि, परिहरि सब सुख, भये सुमति राम-अनुरागी।
सो तनु पाइ अघाइ किये अघ, अवगुन-उदधि अभागी।।
ग्यान, बिराग, जोग, जप, तप, मख, जग मुद-मग नहिं थोरे।
राम-प्रेमबिनु नेम जाय जैसे मृग -जल-जलधि-हिलोरे।।
लोक-बिलोकि, पुरान-बेद सुनि, समुझि-बूझि गुरू ग्यानी।
प्रीति-प्रतीति राम-पद -पंकज सकल-सुमंगल-खानी।।
अजहुँ जानि जिय, मानि हारि हिय, होइ पलक महँ नीको।
सुमिरू सनेहसहित हित रामहिं, मानु मतो तुलसीको।।