भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"दोहावली / तुलसीदास / पृष्ठ 3" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=तुलसीदास }} {{KKCatKavita}} Category:लम्बी रचना {{KKPageNavigation |पीछे=द…)
 
 
(इसी सदस्य द्वारा किया गया बीच का एक अवतरण नहीं दर्शाया गया)
पंक्ति 11: पंक्ति 11:
 
}}
 
}}
 
<poem>
 
<poem>
'''दोहा संख्या 31 से 40'''
+
'''दोहा संख्या 21 से 30'''
  
 
+
तुलसी हठि हठि कहत नित चित सुनि हित करि मानि।  
श्री तुलसी हठि हठि कहत नित चित सुनि हित करि मानि।  
+
 
लाभ राम सुमिरन बड़ो बड़ी बिसारें हानि।21।  
 
लाभ राम सुमिरन बड़ो बड़ी बिसारें हानि।21।  
 +
 
बिगरी जनम अनेक की सुधरै अबहीं आजु।  
 
बिगरी जनम अनेक की सुधरै अबहीं आजु।  
 
होहि राम को नाम जपु तुलसी तजि कुसमाजु।22।  
 
होहि राम को नाम जपु तुलसी तजि कुसमाजु।22।  
 +
 
प्रीति प्रतीति सुरीति सों राम राम जपु राम।  
 
प्रीति प्रतीति सुरीति सों राम राम जपु राम।  
 
तुलसी तेरो है भलेा आदि मध्य परिनाम।23।  
 
तुलसी तेरो है भलेा आदि मध्य परिनाम।23।  
पंक्ति 41: पंक्ति 42:
 
सकल कामना हीन जे राम भगति रस लीन।  
 
सकल कामना हीन जे राम भगति रस लीन।  
 
नाम सुप्रेम पियुष हद तिन्हहुँ किए मन मीन।30।  
 
नाम सुप्रेम पियुष हद तिन्हहुँ किए मन मीन।30।  
 +
  
 
</poem>
 
</poem>

19:28, 12 मार्च 2011 के समय का अवतरण

दोहा संख्या 21 से 30

 तुलसी हठि हठि कहत नित चित सुनि हित करि मानि।
लाभ राम सुमिरन बड़ो बड़ी बिसारें हानि।21।

बिगरी जनम अनेक की सुधरै अबहीं आजु।
होहि राम को नाम जपु तुलसी तजि कुसमाजु।22।

प्रीति प्रतीति सुरीति सों राम राम जपु राम।
तुलसी तेरो है भलेा आदि मध्य परिनाम।23।

दंपति रस दसन परिजन बदन सुगेह।
तुलसी हर हित बरन सिसु संपति सहज सनेह।24।
 
बरषा रितु रघुपति भगति तुलसी सालि सुदास।
रामनाम बर बरन जुग सावन भादव मास।25।

राम नाम नर केसरी कनककसिपु कलिकाल।
जापक जन प्रहलाद जिमि पालिहि दलि सुरसाल।26।

राम नाम किल कामतरू राम भगति सुरधेनु।
सकल सुमंगल मूल जग गुरूपद पंकज रेनु।27।

राम नाम कलि कामतरू सकल सुमंगल कंद।
सुमिरत करतल सिद्धि सब पग पग परमानंद।28।

 जथा भूमि सब बीजमय नखत निवास अकास।
 रामनाम सब धरममय जानत तुलसीदास।29।

सकल कामना हीन जे राम भगति रस लीन।
नाम सुप्रेम पियुष हद तिन्हहुँ किए मन मीन।30।