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कवितावली/ तुलसीदास / पृष्ठ 9

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'''(वन के मार्ग में)'''
प्ुारतें निकसी रघुबीर बधू धरि धीर दए मगमें डग द्वै। पात भरी सहरी, सकल सुत बारे-बारे,
झलकीं भरि भाल कनीं जलकीकेवटकी जाति, पुट सूखि गए मधुराधर वै।।कछु बेद न पढ़ाइहों ।
फिरि बूझति हैंसबु परिवारू मेरेा याहि लागि, चलनो अब केतिकराजा जू, पर्नककुटी करिहैं कित ह्वै?
हौं दीन बित्तहीन, तियकी लखि आतुरता पियकी अँखियाँ अति चारू चलीं जल च्वै।11। कैसें दूसरी गढ़ाइहौं ।।
जलको गए लक्खनु, हैं लरिकागौतमकी घरनी ज्यों तरनी तरैगी मेरी,
परिखौ, पिय! छाँह घरीक प्रभुसेां निषादु ह्वै ठाढ़े। कै बादु ना बढ़ाइहौं।
पोेंछि पसेउ बयारि करौं तुलसी के ईस राम, रावरे सों साँची कहौं,
अरू पाय पखारिहौं भूभुरि-डाढ़े।। बिना पग धोएँ नाथ, नाव ना चढ़ाइहौं।8।
तुलसी रघुबीर प्रियाश्रम जानि कै
बैठि बिलंब लौं कंटक काढ़े।
जानकीं नाहको नेहु लख्योजिन्हको पुनीत बारि धारैं सिरपै पुरारि, पुलको तनु, बारि बिलोचन बाढ़े।12।
ठाढ़े हैं नवद्रुमडार गहें, त्रिपथगामिनि जसु बेद कहैं गाइकै।
धनु काँधे धरेंजिन्हको जोगीन्द्र मुनिबृंद देव देह दमि, कर सायकु लै।
बिकटी भृकुटी, बड़री अँखियाँ, करत बिबिध जोग-जप मनु लाइकै।।
अनमोल कपोलन की छबि है।।
तुलसी अस मूरति आनु हिएँजिन्हकी धूरि परसि अहल्या तरी,
जड! डारू धौं प्रान निछावरि कै।। गौतम सिधारे गृह सो लेवादकै।।
श्रमसीकर साँवरि देह लसैतेई पाय पाइकै चढ़ाइ नाव धोए बिनु, मनेा रासि महा तम तारकमै।13।
ख्वैहौं न पठावनी कै ह्वैहौं न हँसाइ कै।9।
जलजनयन, जलजानन जटा है सिर,
जौबन -उमंग अंग उदित उदार है।।
साँवरे-गोरेके बीच भामिनी सुदामिनी-सीप्रभुरूख पाइ कै, बोलाइ बालक बालक धरनिहि,
मुनिपट धारैं , उर फूलनिके हार हैं।। बंदि कै चरन चहूँ दिसि बैठे घेरि-घेरि।
करनि सरासन सिलीमुख, निषंग कटिछोटो-सो कठौता भरि आनि पानी गंगाजूको,
अति ही अनूप काहू भूपके कुमार है। धोइ पाय पीअत पुनीत बारि फेरि-फेरि।।
तुलसी बिलोकि कै तिलोकके तिलक तीनि
रहे नरनारि ज्यों चितेरे चित्रसार हैं।14। तुलसी सराहैं ताको भागु, सानुराग सुर,
बरषैं सुमन, जय-जय कहैं टेरि -टेरि।।
आगे साँवरो कुँवरू गोरो पाछें बिबिध सनेह -पाछेंसानी बानी असयानी सुनि,
आछे मुनिवेष धरें, लाजत अनंग हैं।हँसैं राघौ जानकी-लखन तन हेरि-हेरि।10।
बान बिसिषासन, बसन बनही के कटि ,
 
कसे हैं बनाइ, नीके राजत निषंग हैं।।
 
साथ निसिनाथ मुखी पाथनाथनंदिनी-सी,
 
तुलसी बिलोकें चितु लाइ लेत संग है।
 
आनँद उमंग मन, जौबन-उमंग तन,
 
रूपकी उमंग उमगत अंग-अंग है।15।
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