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|संग्रह=वंशी और मादल / ठाकुरप्रसाद सिंह
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दिन बसन्त के
 
राजा-रानी-से तुम दिन बसन्त के
 
आए हो हिम के दिन बीतते
 
दिन बसन्त के
 
पात पुराने पीले झरते हैं झर-झर कर
 
नई कोंपलों ने शृंगार किया है जी भर
 
फूल चन्द्रमा का झुक आया है धरती पर
 
अभी-अभी देखा मैंने वन को हर्ष भर
 
कलियाँ लेते फलते, फूलते
 
झुक-झुककर लहरों पर झूमते
 
आए हो हिम के दिन बीतते
 
दिन बसन्त के
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