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"त्रासदी है ! / योगेन्द्र दत्त शर्मा" के अवतरणों में अंतर
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इसी अफ़सोस में ही अनमनी हैं | इसी अफ़सोस में ही अनमनी हैं | ||
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दृष्टियों का अजनबीपन | दृष्टियों का अजनबीपन | ||
हो रहा हर रोज़ गहरा | हो रहा हर रोज़ गहरा | ||
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खोखलेपन के वज़न से | खोखलेपन के वज़न से | ||
पीठ आदम की लदी है ! | पीठ आदम की लदी है ! | ||
त्रासदी है ! | त्रासदी है ! | ||
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11:47, 22 मार्च 2011 के समय का अवतरण
चाँदनी ने गँध अपनी
कौड़ियों में बेच दी है,
त्रासदी है !
रोशनी का धुन्ध के
वातावरण से सामना है
बिम्ब को पीता हुआ
लगता यहाँ हर आइना है
सभ्यता के मोड़ पर
सहमी हुई मन की नदी है !
त्रासदी है !
हर तरफ़ दीवार
काँटेदार झाड़ी की बनी है
क़ैद पँखुड़ियाँ
इसी अफ़सोस में ही अनमनी हैं
फूल की तक़दीर में बस
डाल से टूटन बदी है !
त्रासदी है !
झुर्रियों, शिकनों, लकीरों से
ढका प्रत्येक चेहरा
दृष्टियों का अजनबीपन
हो रहा हर रोज़ गहरा
खोखलेपन के वज़न से
पीठ आदम की लदी है !
त्रासदी है !