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"गए साल की / केदारनाथ अग्रवाल" के अवतरणों में अंतर
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02:04, 25 मार्च 2011 के समय का अवतरण
गए साल की
ठिठकी ठिठकी ठिठुरन
नए साल के
नए सूर्य ने तोड़ी।
देश-काल पर,
धूप-चढ़ गई,
हवा गरम हो फैली,
पौरुष के पेड़ों के पत्ते
चेतन चमके।
दर्पण-देही
दसों दिशाएँ
रंग-रूप की
दुनिया बिम्बित करतीं,
मानव-मन में
ज्योति-तरंगे उठतीं।
रचनाकाल: ०१-०१-१९७८