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:पस ए पर्दा किसी ने मेरे अरमानों की महफ़िल को :कुछ इस अंदाज़ से देखा कुछ ऐसे तौर से देखा:ग़ुबार ए आह से देकर जिला आइना ए दिल को :हर इक सूरत को मैंने ख़ूब देखा गौर से देखा
नज़र आई न वो सूरत मुझे जिसकी तमन्ना थी
बहुत ढूँढा किया गुलशन में वीराने में बस्ती में