Changes

बसंत ऋतु / बेढब बनारसी

27 bytes added, 13:11, 28 मार्च 2011
{{KKRachna
|रचनाकार=बेढब बनारसी
}}{{KKAnthologyBasant}}{{KKCatKavitaKKCatKavita‎}}
<poem>
और आधी रात तक तो
जागती है सास आली; आ गया मधुमास आली
 
जब कहा - मुझको दिखा दो
एक दिन सिनेमा भला तो;
बोल उठे संध्या समय
लगता हमारा क्लास आली; आ गया मधुमास आली
 
ढ़ाक और कचनार फूले
आम के भी बौर झूले
रट रहे हैं किन्तु वह
तद्धित-कृदंत-समास आली; आ गया मधुमास आली
 
'सेंट' माँगा; सोप माँगा,
ह्रदय को कुछ होप माँगा