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{{KKRachna
|रचनाकार=गोपाल सिंह नेपाली
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<poem>
ओ मृगनैनी , ओ पिक बैनी ,तेरे सामने बाँसुरिया झूठी है !
रग-रग में इतना रंग भरा,
कि रंगीन चुनरिया झूठी है ! 
मुख भी तेरा इतना गोरा,
बिना चाँद का है पूनम !है दरस-परस इतना शीतल ,शरीर नहीं है शबनम !
अलकें-पलकें इतनी काली,
घनश्याम बदरिया झूठी है ! 
रग-रग में इतना रंग भरा,
कि रंगीन चुनरिया झूठी है !क्या होड़ करें चन्दा तेरी ,काली सूरत धब्बे वाली !
कहने को जग को भला-बुरा,
तू हंसती हँसती और लजाती !
मौसम सच्चा तू सच्ची है,
यह सकल बदरिया झूठी है ! 
रग-रग में इतना रंग भरा,
कि रंगीन चुनरिया झूठी है !
<poem>