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वसंत / मंगलेश डबराल
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|रचनाकार=मंगलेश डबराल
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इन ढलानों पर वसन्त
ठंड से मरी हुई इच्छाओं को फिर से जीवित करता
धीमे-धीमे
धुंध्वाता
धुंधवाता
ख़ाली कोटरों में
घाटी की घास फैलती रहेगी रात को
Pratishtha
KKSahayogi,
प्रशासक
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