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वसंत / मंगलेश डबराल

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{{KKRachna
|रचनाकार=मंगलेश डबराल
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इन ढलानों पर वसन्त
ठंड से मरी हुई इच्छाओं को फिर से जीवित करता
धीमे-धीमे धुंध्वाता धुंधवाता ख़ाली कोटरों में
घाटी की घास फैलती रहेगी रात को