भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"बादल आए गोल बाँधकर / केदारनाथ अग्रवाल" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=केदारनाथ अग्रवाल |संग्रह=कुहकी कोयल खड़े पेड़ …) |
Pratishtha (चर्चा | योगदान) |
||
(एक अन्य सदस्य द्वारा किया गया बीच का एक अवतरण नहीं दर्शाया गया) | |||
पंक्ति 4: | पंक्ति 4: | ||
|संग्रह=कुहकी कोयल खड़े पेड़ की देह / केदारनाथ अग्रवाल | |संग्रह=कुहकी कोयल खड़े पेड़ की देह / केदारनाथ अग्रवाल | ||
}} | }} | ||
+ | {{KKAnthologyVarsha}} | ||
{{KKCatKavita}} | {{KKCatKavita}} | ||
<poem> | <poem> |
19:06, 31 मार्च 2011 के समय का अवतरण
बादल आए
गोल बाँधकर
नभ में छाए
सूरज का मुँह रहे छिपाए
मैंने देखा :
इन्हें देख गजराज लजाए-
इनके आगे शीश झुकाए-
बोल न पाए
बादल आए
बरखा के घर साजन आए
जल भर लाए
झूम झमाझम बरस अघाए
मैंने देखा;
प्रकृति-पुरुष सब साथ नहाए,
नहा-नहाकर अति हरसाए-
ताप मिटाए
रचनाकाल: २५-०७-१९७६, बाँदा