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शिशिर / बरीस पास्तेरनाक
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<Poem>
मैंने अपने परिवार को बिखर जाने दिया
अपने नन्हे-मुन्नों को
तितर-बितर हो जाने दिया
एकाजीवन
एक आजीवन
अकेलापन छाया है
प्रकृति में और हृदय में ।
Pratishtha
KKSahayogi,
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