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01:02, 1 अप्रैल 2011 के समय का अवतरण
शिविर की शर्वरी
हिंस्र पशुओं भरी।
ऐसी दशा विश्व की विमल लोचनों
देखी, जगा त्रास, हृदय संकोचनों
कांपा कि नाची निराशा दिगम्बरी।
मातः, किरण हाथ प्रातः बढ़ाया
कि भय के हृदय से पकड़कर छुड़ाया,
चपलता पर मिली अपल थल की तरी।