भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"पान मसाला / दिनेश कुमार शुक्ल" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=दिनेश कुमार शुक्ल |संग्रह=ललमुनिया की दुनिया / द…)
 
 
पंक्ति 3: पंक्ति 3:
 
|रचनाकार=दिनेश कुमार शुक्ल
 
|रचनाकार=दिनेश कुमार शुक्ल
 
|संग्रह=ललमुनिया की दुनिया / दिनेश कुमार शुक्ल
 
|संग्रह=ललमुनिया की दुनिया / दिनेश कुमार शुक्ल
}}
+
}}{{KKAnthologyPan}}
 
{{KKCatKavita‎}}
 
{{KKCatKavita‎}}
 
<poem>
 
<poem>

22:35, 1 अप्रैल 2011 के समय का अवतरण

घना सन्नाटा, गरजता दैन्य
लाखों मक्खियों की
भिनभिनाती हुई दुपहर,
पिघलता डामर
पकड़ता तला जूते का.....

बन्द चालिस साल से है गेट
ऐल्गिन-मील का
बन्द सब कल-कारखाने कानपुर के
जहाँ देखो तहाँ
लटका बड़ा सा ताला......

प्रगति की लम्बी छलाँगे मारता
वो गया भारत

कहीं कोई तो नहीं अब
टोकने वाला
सभी के मुँह पड़ा ताला
मसाला पान का
हाय रे कैसा कसाला
कहो बेगम ! कहो लाल !