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| ** [[तेरे क़दमों का संगीत / ओसिप मंदेलश्ताम]] | | ** [[तेरे क़दमों का संगीत / ओसिप मंदेलश्ताम]] |
| ** [[माँ की मीठी आवाज़ / अनातोली परपरा]] | | ** [[माँ की मीठी आवाज़ / अनातोली परपरा]] |
− | ** [ दोपहर के अलसाये पल/पाबलो नेरुदा ] | + | ** [[दोपहर के अलसाये पल/पाबलो नेरुदा]] |
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− | नेफताली रीकर्डो रेइस या पाबलो नेरुदा का जन्म पाराल , चीले, आर्जेन्टीना मेँ १९०४ के समय मेँ हुआ था.
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− | वे दक़्शिण अमरीका भूखँड के सबसे प्रसिध्ध कवि हैँ. उन्हे भारत के श्री रवीम्द्र नाथ ठाकुर की तरह भाषा के लिये,
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− | नोबल इनाम सन्` १९७१ मेँ मिला था.
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− | पाबलो नेरुदा ने, अपने जीवन मेँ कई यात्राएँ कीँ- रुस, चीन, पूर्वी युरोप की यात्रा के बाद उनका सन्` १९७३ मेँ निधन हो गया था.
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− | उनका कविता के लिये कहना था कि, " एक कवि को भाइचारे और एकाकीपन के बीच एवम्` भावुकता और कर्मठता के बीच, व अपने आप से लगाव और समूचे विश्वसे सौहार्द व कुदरत के उद्घघाटनोँ के मध्य सँतुलित रह कर रचना करना जरूरी होता है और वही कविता होती है -- "
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− | ( यह मेरा एक नम्र प्रयास है नेरुदा के काव्य का अनुवाद प्रस्तुत है )
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− | : " दोपहर के अलसाये पल "
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− | तुम्हारी समँदर -सी गहरी आँखोँ मेँ,
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− | फेँकता पतवार मैँ, उनीँदी दोपहरी मेँ -
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− | उन जलते क्षणोँ मेँ, मेरा ऐकाकीपन
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− | और घना होकर, जल उठता है - डूबते माँझी की तरहा -
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− | लाल दहकती निशानीयाँ, तुम्हारी खोई आँखोँ मेँ,
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− | जैसे "दीप ~ स्तँभ" के समीप, मँडराता जल !
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− | मेरे दूर के सजन, तुम ने अँधेरा ही रखा
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− | तुम्हारे हावभावोँ मेँ उभरा यातनोँ का किनारा ---
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− | अलसाई दोपहरी मेँ, मैँ, फिर उदास जाल फेँकता हूँ --
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− | उस दरिया मेँ , जो तुम्हारे नैया से नयनोँ मेँ कैद है !
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− | रात के पँछी, पहले उगे तारोँ को, चोँच मारते हैँ -
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− | और वे, मेरी आत्मा की ही तरहा, और दहक उठते हैँ !
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− | रात, अपनी परछाईँ की ग़्होडी पर रसवार दौडती है ,
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− | अपनी नीली फुनगी के रेशम - सी लकीरोँ को छोडती हुई !
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− | ---- लावण्या
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