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|रचनाकार=जयप्रकाश मानस
|संग्रह=होना ही चाहिए आंगन / जयप्रकाश मानस
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शमशान की काँटेदार फ़ेंस पार करने के बाद
वहीं-वहीं सजल नेत्रों से
मैं भी खड़ा रहूँगारहूंगा
तुम्हारे द्वार पर