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'''(मारीचानुधावन)'''
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'''भाग-4 किष्किन्धा काण्ड प्रारंभ '''
  
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'''(समुद्रोल्लंघन)'''
  
पंचबटीं बर पर्नकुटी तर बैठे हैं रामु सुभायँ सुहाए।
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जब अंगदादिनकी मति-गति मंद भई ,
  
  
सोहै प्रिया, प्रिय बंधु लसै ‘तलसी’ सब अंग घने छबि छाए।।
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पवनके पूतको न कूदिबेको पलु गो।
  
 
   
 
   
देखि मृगा मृगनैनी कहे प्रिय बेैन, ते प्रीतमके मन भाए।
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साहसी ह्वै सैलपर सहसा सकेलि आइ,
  
  
हेमकुरंगके संग सरासनु सायकु लै रघुनायकु धाए।।
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चितवत चहूँ ओर, औरति को कलु गो।
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‘तुलसी’ रसातल को निकसि सलिलु आयो,
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कालु कलमल्यो, अहि-कमठको बलु गो।ं
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चारिहू चरन के चपेट चाँपें चिपिटि गो,
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उचकें उचकि चारि अंगुल अचलु गो।।
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'''(इति किष्किन्धा काण्ड )'''
  
  
'''(इति अरण्य काण्ड )'''
 
 
        
 
        
 
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20:09, 6 अप्रैल 2011 के समय का अवतरण

 
भाग-4 किष्किन्धा काण्ड प्रारंभ

(समुद्रोल्लंघन)

जब अंगदादिनकी मति-गति मंद भई ,


पवनके पूतको न कूदिबेको पलु गो।

 
साहसी ह्वै सैलपर सहसा सकेलि आइ,


 चितवत चहूँ ओर, औरति को कलु गो।


 ‘तुलसी’ रसातल को निकसि सलिलु आयो,


कालु कलमल्यो, अहि-कमठको बलु गो।ं


चारिहू चरन के चपेट चाँपें चिपिटि गो,

 
उचकें उचकि चारि अंगुल अचलु गो।।


(इति किष्किन्धा काण्ड )