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<poem>
:ख़ूबसूरत फ़रेब शादी है|:फ़ितरत ए ग़म ही मुस्करा दी है|
:हम ने छेड़ा है जब भी साज़ ए जुनूँ
:तीरगी शब की गुनगुना दी है|
:आलम ए वज्द ओ बेख़ुदी में तुझे
:हम ने आवाज़ बारहा दी है |
:ऐ ज़मीं हम ने तेरे क़दमों पर
:आसमाँ की जबीं झुका दी है |
:हम ने तूफ़ान ए शोर ओ शेवन से
:किश्ती ए जब्र डगमगा दी है |
:कोशिश ए अमन तो बजा है मगर
:आदमी फ़ितरतन फ़सादी है |
:ऐ ख़ुदा तू ने अपने बन्दों को
:ज़िन्दगी की कड़ी सज़ा दी है|
:ऐ " ज़िया " क़लब ए इश्क़ परवर में
:हुस्न ने आग-सी लगा दी है|</poem>