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रेत के समन्दर सी/ रमा द्विवेदी
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13:06, 9 अप्रैल 2011
चाहे बना लो रेत के कितने घरौंदे तुम,
वक़्त के उबाल में
ढ़ह
ढह
जाए ज़िन्दगी।
जिनका वजूद रेत के तले दबा दिया,
उनको ही चट्टान बनाए यह ज़िन्दगी।
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poem>
Ramadwivedi
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