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चाहे बना लो रेत के कितने घरौंदे तुम,
वक़्त के उबाल में ढ़ह ढह जाए ज़िन्दगी।
जिनका वजूद रेत के तले दबा दिया,
उनको ही चट्टान बनाए यह ज़िन्दगी।
 </poem>
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