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नज़दीकियों की चाह / उमेश पंत
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04:02, 12 अप्रैल 2011
नज़दीकियों की चाह ।
दूरियां
दूरियाँ
धूल भरी सूखी हवा-सी
चली आती हैं साँसो में
और उनसे भागना लगता है
जैसे ज़िन्दगी से भागना,
पर जब
नज़दीकियां
नज़दीकियाँ
दूर चली जाती हैं
तो दूरियों के पास नहीं होता
पास आने के सिवाय और कोई विकल्प ।
अनिल जनविजय
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