भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"जीने का हुनर / मोहम्मद इरशाद" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
आशिष पुरोहित (चर्चा | योगदान) (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार= मोहम्मद इरशाद |संग्रह= ज़िन्दगी ख़ामोश कहाँ / म…) |
आशिष पुरोहित (चर्चा | योगदान) |
||
पंक्ति 8: | पंक्ति 8: | ||
या रब मुझको ऐसा जीने का हुनर दे | या रब मुझको ऐसा जीने का हुनर दे | ||
− | + | मुझसे मिले जो इंसाँ तू उसको मेरा कर दे | |
नफरत बसी हुई है जिन लोगों के दिल में | नफरत बसी हुई है जिन लोगों के दिल में | ||
पंक्ति 23: | पंक्ति 23: | ||
हर हाल में करते हैं जो शुक्र अदा तेरा | हर हाल में करते हैं जो शुक्र अदा तेरा | ||
− | ‘इरशाद’ को भी मौला | + | ‘इरशाद’ को भी मौला तू बस ऐसा ही कर दे |
</Poem> | </Poem> |
20:01, 12 अप्रैल 2011 के समय का अवतरण
या रब मुझको ऐसा जीने का हुनर दे
मुझसे मिले जो इंसाँ तू उसको मेरा कर दे
नफरत बसी हुई है जिन लोगों के दिल में
परवर दिगार उनको मुहब्बत से भर दे
मैं ख़ुद के ऐब देखूँ ओ लोगों की खूबियाँ
अल्लाह जो दे तो मुझे ऐसी नज़र दे
बेखौफ जी रहा हूँ गुनहगार हो गया
दुनिया का नहीं दिल को मेरे अपना ही डर दे
जो लोग भटकते हैं दुनिया में दरबदर
मोती का ना सही उन्हें तिनकों का तो घर दे
हर हाल में करते हैं जो शुक्र अदा तेरा
‘इरशाद’ को भी मौला तू बस ऐसा ही कर दे