"रामलला नहछू / तुलसीदास" के अवतरणों में अंतर
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आदि सारदा गनपति गौरि मनाइय हो। | आदि सारदा गनपति गौरि मनाइय हो। | ||
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रामलला कर नहछू गाइ सुनाइय हो।। | रामलला कर नहछू गाइ सुनाइय हो।। | ||
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जेहि गाये सिधि होय परम निधि पाइय हो। | जेहि गाये सिधि होय परम निधि पाइय हो। | ||
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कोटि जनम कर पातक दूरि सो जाइय हो ।।१।। | कोटि जनम कर पातक दूरि सो जाइय हो ।।१।। | ||
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कोटिन्ह बाजन बाजहिं दसरथ के गृह हो । | कोटिन्ह बाजन बाजहिं दसरथ के गृह हो । | ||
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देवलोक सब देखहिं आनँद अति हिय हो।। | देवलोक सब देखहिं आनँद अति हिय हो।। | ||
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नगर सोहावन लागत बरनि न जातै हो। | नगर सोहावन लागत बरनि न जातै हो। | ||
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कौसल्या के हर्ष न हृदय समातै हो ।।२।। | कौसल्या के हर्ष न हृदय समातै हो ।।२।। | ||
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आले हि बाँस के माँड़व मनिगन पूरन हो। | आले हि बाँस के माँड़व मनिगन पूरन हो। | ||
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मोतिन्ह झालरि लागि चहूँ दिसि झूलन हो।। | मोतिन्ह झालरि लागि चहूँ दिसि झूलन हो।। | ||
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गंगाजल कर कलस तौ तुरित मँगाइय हो। | गंगाजल कर कलस तौ तुरित मँगाइय हो। | ||
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जुवतिन्ह मंगल गाइ राम अन्हवाइय हो ।।३।। | जुवतिन्ह मंगल गाइ राम अन्हवाइय हो ।।३।। | ||
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देइ सुअरघ राम कहँ लेइ बैठाइय हो।। | देइ सुअरघ राम कहँ लेइ बैठाइय हो।। | ||
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कनकखंभ चहुँ ओर मध्य सिंहासन हो। | कनकखंभ चहुँ ओर मध्य सिंहासन हो। | ||
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मानिकदीप बराय बैठि तेहि आसन हो ।।४।। | मानिकदीप बराय बैठि तेहि आसन हो ।।४।। | ||
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बनि बनि आवति नारि जानि गृह मायन हो। | बनि बनि आवति नारि जानि गृह मायन हो। | ||
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बिहँसत आउ लोहारिनि हाथ बरायन हो।। | बिहँसत आउ लोहारिनि हाथ बरायन हो।। | ||
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अहिरिनि हाथ दहेड़ि सगुन लेइ आवइ हो। | अहिरिनि हाथ दहेड़ि सगुन लेइ आवइ हो। | ||
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उनरत जोबनु देखि नृपति मन भावइ हो ।।५।। | उनरत जोबनु देखि नृपति मन भावइ हो ।।५।। | ||
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रूपसलोनि तँबोलिनि बीरा हाथहि हो। | रूपसलोनि तँबोलिनि बीरा हाथहि हो। | ||
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जाकी ओर बिलोकहि मन तेहि साथहि हो।। | जाकी ओर बिलोकहि मन तेहि साथहि हो।। | ||
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दरजिनि गोरे गात लिहे कर जोरा हो। | दरजिनि गोरे गात लिहे कर जोरा हो। | ||
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केसरि परम लगाइ सुगंधन बोरा हो ।।६।। | केसरि परम लगाइ सुगंधन बोरा हो ।।६।। | ||
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मोचिनि बदन-सकोचिनि हीरा माँगन हो। | मोचिनि बदन-सकोचिनि हीरा माँगन हो। | ||
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पनहि लिहे कर सोभित सुंदर आँगन हो।। | पनहि लिहे कर सोभित सुंदर आँगन हो।। | ||
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बतिया कै सुधरि मलिनिया सुंदर गातहि हो। | बतिया कै सुधरि मलिनिया सुंदर गातहि हो। | ||
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कनक रतनमनि मौरा लिहे मुसुकातहि हो।।७।। | कनक रतनमनि मौरा लिहे मुसुकातहि हो।।७।। | ||
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कटि कै छीन बरिनिआँ छाता पानिहि हो। | कटि कै छीन बरिनिआँ छाता पानिहि हो। | ||
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चंद्रबदनि मृगलोचनि सब रसखानिहि हो।। | चंद्रबदनि मृगलोचनि सब रसखानिहि हो।। | ||
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नैन विसाल नउनियाँ भौं चमकावइ हो। | नैन विसाल नउनियाँ भौं चमकावइ हो। | ||
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देइ गारी रनिवासहि प्रमुदित गावइ हो ।।८।। | देइ गारी रनिवासहि प्रमुदित गावइ हो ।।८।। | ||
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कौसल्या की जेठि दीन्ह अनुसासन हो। | कौसल्या की जेठि दीन्ह अनुसासन हो। | ||
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``नहछू जाइ करावहु बैठि सिंहासन हो''।। | ``नहछू जाइ करावहु बैठि सिंहासन हो''।। | ||
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गोद लिहे कौसल्या बैठी रामहि बर हो। | गोद लिहे कौसल्या बैठी रामहि बर हो। | ||
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सोभित दूलह राम सीस पर आँचर हो ।।९।। | सोभित दूलह राम सीस पर आँचर हो ।।९।। | ||
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नाउनि अति गुनखानि तौ बेगि बोलाई हो। | नाउनि अति गुनखानि तौ बेगि बोलाई हो। | ||
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करि सिँगार अति लोन तो बिहसति आई हो।। | करि सिँगार अति लोन तो बिहसति आई हो।। | ||
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कनक-चुनिन सों लसित नहरनी लिये कर हो। | कनक-चुनिन सों लसित नहरनी लिये कर हो। | ||
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आनँद हिय न समाइ देखि रामहि बर हो ।।१०।। | आनँद हिय न समाइ देखि रामहि बर हो ।।१०।। | ||
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काने कनक तरीवन, बेसरि सोहइ हो। | काने कनक तरीवन, बेसरि सोहइ हो। | ||
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गजमुकुता कर हार कंठमनि मोहइ हो।। | गजमुकुता कर हार कंठमनि मोहइ हो।। | ||
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कर कंचन, कटि किंकिन, नूपुर बाजइ हो। | कर कंचन, कटि किंकिन, नूपुर बाजइ हो। | ||
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रानी कै दीन्हीं सारी तौ अधिक बिराजइ हो ।।११।। | रानी कै दीन्हीं सारी तौ अधिक बिराजइ हो ।।११।। | ||
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काहे रामजिउ साँवर, लछिमन गोर हो। | काहे रामजिउ साँवर, लछिमन गोर हो। | ||
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कीदहुँ रानि कौसलहि परिगा भोर हो।। | कीदहुँ रानि कौसलहि परिगा भोर हो।। | ||
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राम अहहिं दसरथ कै लछिमन आन क हो। | राम अहहिं दसरथ कै लछिमन आन क हो। | ||
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भरत सत्रुहन भाइ तौ श्रीरघुनाथ क हो ।।१२।। | भरत सत्रुहन भाइ तौ श्रीरघुनाथ क हो ।।१२।। | ||
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आजु अवधपुर आनँद नहछू राम क हो। | आजु अवधपुर आनँद नहछू राम क हो। | ||
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चलहू नयन भरि देखिय सोभा धाम क हो।। | चलहू नयन भरि देखिय सोभा धाम क हो।। | ||
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अति बड़भाग नउनियाँ छुऐ नख हाथ सों हों | अति बड़भाग नउनियाँ छुऐ नख हाथ सों हों | ||
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नैनन्ह करति गुमान तौ श्रीरघुनाथ सों हो ।।१३।। | नैनन्ह करति गुमान तौ श्रीरघुनाथ सों हो ।।१३।। | ||
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जो पगु नाउनि धोवइ राम धोवावइँ हो। | जो पगु नाउनि धोवइ राम धोवावइँ हो। | ||
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सो पगधूरि सिद्ध मुनि दरसन पावइ हो।। | सो पगधूरि सिद्ध मुनि दरसन पावइ हो।। | ||
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अतिसय पुहुप क माल राम-उर सोहइ हो।। | अतिसय पुहुप क माल राम-उर सोहइ हो।। | ||
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तिरछी चितिवनि आनँद मुनिमुख जोहइ हो ।।१४।। | तिरछी चितिवनि आनँद मुनिमुख जोहइ हो ।।१४।। | ||
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नख काटत मुसुकाहिं बरनि नहिं जातहि हो। | नख काटत मुसुकाहिं बरनि नहिं जातहि हो। | ||
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पदुम-पराग-मनिमानहुँ कोमल गातहि हो।। | पदुम-पराग-मनिमानहुँ कोमल गातहि हो।। | ||
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जावक रचि क अँगुरियन्ह मृदुल सुठारी हो। | जावक रचि क अँगुरियन्ह मृदुल सुठारी हो। | ||
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प्रभू कर चरन पछालि तौ अनि सुकुमारी हो ।।१५।। | प्रभू कर चरन पछालि तौ अनि सुकुमारी हो ।।१५।। | ||
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भइ निवछावरि बहु बिधि जो जस लायक हो । | भइ निवछावरि बहु बिधि जो जस लायक हो । | ||
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तुलसिदास बलि जाउँ देखि रघुनायक हो।। | तुलसिदास बलि जाउँ देखि रघुनायक हो।। | ||
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राजन दीन्हे हाथी, रानिन्ह हार हो। | राजन दीन्हे हाथी, रानिन्ह हार हो। | ||
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भरि गे रतनपदारथ सूप हजार हो ।।१६।। | भरि गे रतनपदारथ सूप हजार हो ।।१६।। | ||
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भरि गाड़ी निवछावरि नाऊ लेइ आवइ हो। | भरि गाड़ी निवछावरि नाऊ लेइ आवइ हो। | ||
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परिजन करहिं निहाल असीसत आवइ हो।। | परिजन करहिं निहाल असीसत आवइ हो।। | ||
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तापर करहिं सुमौज बहुत दुख खोवहिँ हो। | तापर करहिं सुमौज बहुत दुख खोवहिँ हो। | ||
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होइ सुखी सब लोग अधिक सुख सोवहिं हो ।।१७।। | होइ सुखी सब लोग अधिक सुख सोवहिं हो ।।१७।। | ||
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गावहिं सब रनिवास देहिं प्रभु गारी हो। | गावहिं सब रनिवास देहिं प्रभु गारी हो। | ||
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रामलला सकुचाहिं देखि महतारी हो।। | रामलला सकुचाहिं देखि महतारी हो।। | ||
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हिलिमिलि करत सवाँग सभा रसकेलि हो। | हिलिमिलि करत सवाँग सभा रसकेलि हो। | ||
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नाउनि मन हरषाइ सुगंधन मेलि हो ।।१८।। | नाउनि मन हरषाइ सुगंधन मेलि हो ।।१८।। | ||
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दूलह कै महतारि देखि मन हरषइ हो। | दूलह कै महतारि देखि मन हरषइ हो। | ||
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कोटिन्ह दीन्हेउ दान मेघ जनु बरखइ हो।। | कोटिन्ह दीन्हेउ दान मेघ जनु बरखइ हो।। | ||
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रामलला कर नहछू अति सुख गाइय हो। | रामलला कर नहछू अति सुख गाइय हो। | ||
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जेहि गाये सिधि होइ परम निधि पाइय हो ।।१९।। | जेहि गाये सिधि होइ परम निधि पाइय हो ।।१९।। | ||
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दसरथ राउ सिंहसान बैठि बिराजहिं हो। | दसरथ राउ सिंहसान बैठि बिराजहिं हो। | ||
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तुलसिदास बलि जाहि देखि रघुराजहि हो।। | तुलसिदास बलि जाहि देखि रघुराजहि हो।। | ||
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जे यह नहछू गावैं गाइ सुनावइँ हो। | जे यह नहछू गावैं गाइ सुनावइँ हो। | ||
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ऋद्धि सिद्धि कल्यान मुक्ति नर पावइँ हो ।।२०।। | ऋद्धि सिद्धि कल्यान मुक्ति नर पावइँ हो ।।२०।। | ||
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20:02, 13 अप्रैल 2011 के समय का अवतरण
आदि सारदा गनपति गौरि मनाइय हो।
रामलला कर नहछू गाइ सुनाइय हो।।
जेहि गाये सिधि होय परम निधि पाइय हो।
कोटि जनम कर पातक दूरि सो जाइय हो ।।१।।
कोटिन्ह बाजन बाजहिं दसरथ के गृह हो ।
देवलोक सब देखहिं आनँद अति हिय हो।।
नगर सोहावन लागत बरनि न जातै हो।
कौसल्या के हर्ष न हृदय समातै हो ।।२।।
आले हि बाँस के माँड़व मनिगन पूरन हो।
मोतिन्ह झालरि लागि चहूँ दिसि झूलन हो।।
गंगाजल कर कलस तौ तुरित मँगाइय हो।
जुवतिन्ह मंगल गाइ राम अन्हवाइय हो ।।३।।
गजमुकुता हीरामनि चौक पुराइय हो।
देइ सुअरघ राम कहँ लेइ बैठाइय हो।।
कनकखंभ चहुँ ओर मध्य सिंहासन हो।
मानिकदीप बराय बैठि तेहि आसन हो ।।४।।
बनि बनि आवति नारि जानि गृह मायन हो।
बिहँसत आउ लोहारिनि हाथ बरायन हो।।
अहिरिनि हाथ दहेड़ि सगुन लेइ आवइ हो।
उनरत जोबनु देखि नृपति मन भावइ हो ।।५।।
रूपसलोनि तँबोलिनि बीरा हाथहि हो।
जाकी ओर बिलोकहि मन तेहि साथहि हो।।
दरजिनि गोरे गात लिहे कर जोरा हो।
केसरि परम लगाइ सुगंधन बोरा हो ।।६।।
मोचिनि बदन-सकोचिनि हीरा माँगन हो।
पनहि लिहे कर सोभित सुंदर आँगन हो।।
बतिया कै सुधरि मलिनिया सुंदर गातहि हो।
कनक रतनमनि मौरा लिहे मुसुकातहि हो।।७।।
कटि कै छीन बरिनिआँ छाता पानिहि हो।
चंद्रबदनि मृगलोचनि सब रसखानिहि हो।।
नैन विसाल नउनियाँ भौं चमकावइ हो।
देइ गारी रनिवासहि प्रमुदित गावइ हो ।।८।।
कौसल्या की जेठि दीन्ह अनुसासन हो।
``नहछू जाइ करावहु बैठि सिंहासन हो।।
गोद लिहे कौसल्या बैठी रामहि बर हो।
सोभित दूलह राम सीस पर आँचर हो ।।९।।
नाउनि अति गुनखानि तौ बेगि बोलाई हो।
करि सिँगार अति लोन तो बिहसति आई हो।।
कनक-चुनिन सों लसित नहरनी लिये कर हो।
आनँद हिय न समाइ देखि रामहि बर हो ।।१०।।
काने कनक तरीवन, बेसरि सोहइ हो।
गजमुकुता कर हार कंठमनि मोहइ हो।।
कर कंचन, कटि किंकिन, नूपुर बाजइ हो।
रानी कै दीन्हीं सारी तौ अधिक बिराजइ हो ।।११।।
काहे रामजिउ साँवर, लछिमन गोर हो।
कीदहुँ रानि कौसलहि परिगा भोर हो।।
राम अहहिं दसरथ कै लछिमन आन क हो।
भरत सत्रुहन भाइ तौ श्रीरघुनाथ क हो ।।१२।।
आजु अवधपुर आनँद नहछू राम क हो।
चलहू नयन भरि देखिय सोभा धाम क हो।।
अति बड़भाग नउनियाँ छुऐ नख हाथ सों हों
नैनन्ह करति गुमान तौ श्रीरघुनाथ सों हो ।।१३।।
जो पगु नाउनि धोवइ राम धोवावइँ हो।
सो पगधूरि सिद्ध मुनि दरसन पावइ हो।।
अतिसय पुहुप क माल राम-उर सोहइ हो।।
तिरछी चितिवनि आनँद मुनिमुख जोहइ हो ।।१४।।
नख काटत मुसुकाहिं बरनि नहिं जातहि हो।
पदुम-पराग-मनिमानहुँ कोमल गातहि हो।।
जावक रचि क अँगुरियन्ह मृदुल सुठारी हो।
प्रभू कर चरन पछालि तौ अनि सुकुमारी हो ।।१५।।
भइ निवछावरि बहु बिधि जो जस लायक हो ।
तुलसिदास बलि जाउँ देखि रघुनायक हो।।
राजन दीन्हे हाथी, रानिन्ह हार हो।
भरि गे रतनपदारथ सूप हजार हो ।।१६।।
भरि गाड़ी निवछावरि नाऊ लेइ आवइ हो।
परिजन करहिं निहाल असीसत आवइ हो।।
तापर करहिं सुमौज बहुत दुख खोवहिँ हो।
होइ सुखी सब लोग अधिक सुख सोवहिं हो ।।१७।।
गावहिं सब रनिवास देहिं प्रभु गारी हो।
रामलला सकुचाहिं देखि महतारी हो।।
हिलिमिलि करत सवाँग सभा रसकेलि हो।
नाउनि मन हरषाइ सुगंधन मेलि हो ।।१८।।
दूलह कै महतारि देखि मन हरषइ हो।
कोटिन्ह दीन्हेउ दान मेघ जनु बरखइ हो।।
रामलला कर नहछू अति सुख गाइय हो।
जेहि गाये सिधि होइ परम निधि पाइय हो ।।१९।।
दसरथ राउ सिंहसान बैठि बिराजहिं हो।
तुलसिदास बलि जाहि देखि रघुराजहि हो।।
जे यह नहछू गावैं गाइ सुनावइँ हो।
ऋद्धि सिद्धि कल्यान मुक्ति नर पावइँ हो ।।२०।।