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पहले की तरह / अनिल जनविजय

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|रचनाकार=अनिल जनविजय
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पहुँच अचानक उस ने मेरे घर पर
 
लाड़ भरे स्वर में कहा ठहर कर
 ''"अरे... सब-कुछ पहले जैसा है 
सब वैसा का वैसा है...
 पहले की तरह...''"
फिर शांत नज़र से उस ने मुझे घूरा
 
लेकिन कहीं कुछ रह गया अधूरा
 
उदास नज़र से मैं ने उसे ताका
 
फिर उस की आँखों में झाँका
 
मुस्काई वह, फिर चहकी चिड़िया-सी
 
हँसी ज़ोर से किसी बहकी गुड़िया-सी
 
चूमा उस ने मुझे, फिर सिर को दिया खम
 
बरसों के बाद इस तरह मिले हम
 
पहले की तरह
 
 
(2006 में रचित)
<poem>
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