भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"आओ करें आनन्द केलि / अनिल जनविजय" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
 
(2 सदस्यों द्वारा किये गये बीच के 3 अवतरण नहीं दर्शाए गए)
पंक्ति 2: पंक्ति 2:
 
{{KKRachna
 
{{KKRachna
 
|रचनाकार=अनिल जनविजय
 
|रचनाकार=अनिल जनविजय
|संग्रह=राम जी भला करें
+
|संग्रह=राम जी भला करें / अनिल जनविजय
 
}}
 
}}
 
+
{{KKAnthologyLove}}
 
+
{{KKCatKavita‎}}
 
+
<poem>
 
आओ करें आनन्द-केलि
 
आओ करें आनन्द-केलि
 
 
मेरे  जीवन  की सहेली
 
मेरे  जीवन  की सहेली
 
  
 
विकल-विहग  तेरे उरोज
 
विकल-विहग  तेरे उरोज
 
 
कम्पित-आकुल दोनों सरोज
 
कम्पित-आकुल दोनों सरोज
 
 
हहराता    चेतन - सागर
 
हहराता    चेतन - सागर
 
 
तॄष्णा में  डूबा  है  स्वर
 
तॄष्णा में  डूबा  है  स्वर
 
 
व्यग्र-विह्वल  चंचल-चेहरा
 
व्यग्र-विह्वल  चंचल-चेहरा
 
 
दॄग  छाया    मादक  घेरा
 
दॄग  छाया    मादक  घेरा
 
 
व्याकुल अधर  तपता शरीर
 
व्याकुल अधर  तपता शरीर
 
 
प्रणय पागल  मन है अधीर
 
प्रणय पागल  मन है अधीर
 
  
 
लगे  मुझे  तू  अलबेली
 
लगे  मुझे  तू  अलबेली
 
 
मेरे जीवन  की    सहेली
 
मेरे जीवन  की    सहेली
 
  
 
मंद- मॄदु  उल्लास  तेरा
 
मंद- मॄदु  उल्लास  तेरा
 
 
लालसी  परिहास      मेरा
 
लालसी  परिहास      मेरा
 
 
गरल अनल  रक्तिम  कपोल
 
गरल अनल  रक्तिम  कपोल
 
 
राग  मर्दन  रति  हिल्लोल
 
राग  मर्दन  रति  हिल्लोल
 
 
सातवें  सोपान  पर  हम
 
सातवें  सोपान  पर  हम
 
 
काम  के उत्तान  पर    हम
 
काम  के उत्तान  पर    हम
 
 
झर  झराझर  झरा  पंचम
 
झर  झराझर  झरा  पंचम
 
 
तॄष्णा -तॄप्ति  का    संगम
 
तॄष्णा -तॄप्ति  का    संगम
 
  
 
थी  अनोखी  अनुराग  खेलि
 
थी  अनोखी  अनुराग  खेलि
 
 
मेरे  जीवन  की    सहेली
 
मेरे  जीवन  की    सहेली
  
 
+
(2002)
2002 में रचित
+
</poem>

11:27, 15 अप्रैल 2011 के समय का अवतरण

आओ करें आनन्द-केलि
मेरे जीवन की सहेली

विकल-विहग तेरे उरोज
कम्पित-आकुल दोनों सरोज
हहराता चेतन - सागर
तॄष्णा में डूबा है स्वर
व्यग्र-विह्वल चंचल-चेहरा
दॄग छाया मादक घेरा
व्याकुल अधर तपता शरीर
प्रणय पागल मन है अधीर

लगे मुझे तू अलबेली
मेरे जीवन की सहेली

मंद- मॄदु उल्लास तेरा
लालसी परिहास मेरा
गरल अनल रक्तिम कपोल
राग मर्दन रति हिल्लोल
सातवें सोपान पर हम
काम के उत्तान पर हम
झर झराझर झरा पंचम
तॄष्णा -तॄप्ति का संगम

थी अनोखी अनुराग खेलि
मेरे जीवन की सहेली

(2002)