भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"दिन पतझड़ का / अनिल जनविजय" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) |
|||
(इसी सदस्य द्वारा किये गये बीच के 2 अवतरण नहीं दर्शाए गए) | |||
पंक्ति 4: | पंक्ति 4: | ||
|संग्रह=राम जी भला करें / अनिल जनविजय | |संग्रह=राम जी भला करें / अनिल जनविजय | ||
}} | }} | ||
+ | {{KKAnthologyLove}} | ||
{{KKCatNavgeet}} | {{KKCatNavgeet}} | ||
− | + | {{KKCatKavita}} | |
+ | <poem> | ||
दिन पतझड़ का | दिन पतझड़ का | ||
− | |||
पीला-सा था झरा-झरा | पीला-सा था झरा-झरा | ||
− | |||
छुट्टी का दिन था | छुट्टी का दिन था | ||
− | |||
वर्षा की झड़ी थी भीग रहा था मस्कवा | वर्षा की झड़ी थी भीग रहा था मस्कवा | ||
− | |||
चल रही थी बेहद तेज़ ठंडी हवा | चल रही थी बेहद तेज़ ठंडी हवा | ||
− | |||
खाली बाज़ार, खाली थीं सड़कें | खाली बाज़ार, खाली थीं सड़कें | ||
− | |||
जैसे भूतों का डेरा | जैसे भूतों का डेरा | ||
− | |||
खाली उदास मन था मेरा | खाली उदास मन था मेरा | ||
− | |||
तुमको देखा तो झुलस गया तन | तुमको देखा तो झुलस गया तन | ||
− | |||
हुलस गया मन | हुलस गया मन | ||
− | |||
बिजली चमकी हो जो घन | बिजली चमकी हो जो घन | ||
− | |||
लगने लगा फिर से जीवन यह भरा-भरा | लगने लगा फिर से जीवन यह भरा-भरा | ||
− | |||
तुम आईं तो आया वसन्त | तुम आईं तो आया वसन्त | ||
− | |||
दिन हो गया हरा | दिन हो गया हरा | ||
− | |||
1996 में रचित | 1996 में रचित | ||
+ | </poem> |
11:32, 15 अप्रैल 2011 के समय का अवतरण
दिन पतझड़ का
पीला-सा था झरा-झरा
छुट्टी का दिन था
वर्षा की झड़ी थी भीग रहा था मस्कवा
चल रही थी बेहद तेज़ ठंडी हवा
खाली बाज़ार, खाली थीं सड़कें
जैसे भूतों का डेरा
खाली उदास मन था मेरा
तुमको देखा तो झुलस गया तन
हुलस गया मन
बिजली चमकी हो जो घन
लगने लगा फिर से जीवन यह भरा-भरा
तुम आईं तो आया वसन्त
दिन हो गया हरा
1996 में रचित