भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
Changes
Kavita Kosh से
वैसी ही अठन्नी
मुझे याद आया कि
आज अठन्नी कोई नहीं लेता
भिखारी भी
कैमिस्ट भी लौटाते हैं अठन्नी की जगह बस, एक टॉफ़ी
नहीं , अब मैं इसे कहीं खर्च नहीं करूँगा
अठन्नी की असली कीमत जानता हूँ मैं
</poem>