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"नैन लख्यो जब कुंजन तैं / रसखान" के अवतरणों में अंतर

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<poem>नैन लख्यो जब कुंजन तैं, बनि कै निकस्यो मटक्यो री।
 
सोहत कैसे हरा टटकौ, सिर तैसो किरीट लसै लटक्यो री।
 
सोहत कैसे हरा टटकौ, सिर तैसो किरीट लसै लटक्यो री।
 
को 'रसखान कहै अटक्यो, हटक्यो ब्रजलोग फिरैं भटक्यो री।
 
को 'रसखान कहै अटक्यो, हटक्यो ब्रजलोग फिरैं भटक्यो री।
 
रूप अनूपम वा नट को, हियरे अटक्यो, अटक्यो, अटक्यो री॥
 
रूप अनूपम वा नट को, हियरे अटक्यो, अटक्यो, अटक्यो री॥
 
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20:05, 18 अप्रैल 2011 के समय का अवतरण

नैन लख्यो जब कुंजन तैं, बनि कै निकस्यो मटक्यो री।
सोहत कैसे हरा टटकौ, सिर तैसो किरीट लसै लटक्यो री।
को 'रसखान कहै अटक्यो, हटक्यो ब्रजलोग फिरैं भटक्यो री।
रूप अनूपम वा नट को, हियरे अटक्यो, अटक्यो, अटक्यो री॥