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"पिता / नील कमल" के अवतरणों में अंतर
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तेज कँपकँपाते बुख़ार में | तेज कँपकँपाते बुख़ार में |
00:55, 19 अप्रैल 2011 के समय का अवतरण
तेज कँपकँपाते बुख़ार में
नर्म रेशमी चादर की
गरमाहट का नाम, पिता है
भूख के दिनों में
खाली कनस्तर के भीतर
थोड़े से बचे, चावल की
महक का नाम, पिता है
पिता, नाम है, इस पृथ्वी पर
दो पैरों पर चलते ईश्वर का,
पराजय के ठीक पहले
पीठ को, दीवार की
मज़बूत टेक का नाम, पिता है
पिता के पास मैं जब-जब गया
संशय बदल गए विश्वास में
असम्भव की बर्फ़ पिघल गई
पानी बन कर, सम्भव होती हुई
पिता के सीने-सा मज़बूत
नहीं था कोई दूसरा पत्थर
बताओ, फ़िर, वह कौनसा
पत्थर था , जिसे सीने पर रख कर
दिया पिता ने निर्वासन मुझे
चौदह वर्षों के लिए ।